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महावीर का पुनर्जन्म
गाथा अनाथता की
मुनि ने अपनी सारी कहानी सुना दी। मैं एक धनी सेठ का बेटा हूं । माता-पिता का बड़ा प्यार दुलार मिला । मेरी शादी भी हो गई। सुन्दर सुशील और प्रिय पत्नी का योग मिला। एक दिन अचानक आंख में पीड़ा हो गई। असह्य पीड़ा से मैं बैचेन हो उठा। इतनी भयंकर वेदना हुई कि मैं सहन नहीं कर सका। उस अवस्था में मेरे पिता ने दूर-दूर से वैद्यों को बुलाया, मेरी चिकित्सा कराई। बहुत धन लगाया।
पिता ने नोलियों का मुंह खोल दिया। मेरी माता, मेरे छोटे-बड़े भाइयों ने, मेरी पत्नी ने जितना करना था, कर लिया । मेरी आंख की पीड़ा समाप्त नहीं हुई । मैं कराहता रहा । वैद्य आए, प्राणाचार्य आए । अनेक प्रकार की चिकित्साएं की । न जाने कितनी दवाइयां कहां-कहां से मंगवाई। यदि हनुमान होता तो संजीवनी बूंटी भी मंगवा लेते। पर कुछ भी अर्थ नहीं निकला। राजन! यह मेरी अनाथता थी ।
राजन! जीवन में कुछ क्षण ऐसे आते हैं, जब आदमी गहराई में चला आता है। जब व्यक्ति गहराई में जाता है, उसे समाधान मिल जाता है। दुनिया में किसी को समाधान मिला है तो वह भीतर गहराई में डुबकी लगाने के बाद ही मिला है। बाहर-बाहर भटकने वाले को कभी समाधान नहीं मिलता।
मैंने एक संकल्प किया- इस बार इस असह्य चक्षु वेदना से मुक्त हो जाऊं तो इस विपुल वैभव को छोड़कर मुनि बन जाऊं ।
सोते समय जो संकल्प किया जाता है, वह ज्यादा फलित होता है । प्रेक्षाध्यान में यह सुझाया जाता है - सोते-सोते निश्चय - संकल्प को दोहराएं और संकल्प को दोहराते-दोहराते नींद में चले जाएं, वह संकल्प अवचेतन मन तक पहुंच जाएगा। जो बात अवचेतन मन के स्तर पर पहुंच जाती है, वह क्रियान्वित हो जाती है ।
अनाथी मुनि ने कहा - 'सम्राट ! मैं इस संकल्प के साथ सो गया । मुझे कभी नींद नहीं आती थी पर उस दिन नींद आ गई। मुझे अनुभव हुआ - जैसे-जैसे रात बीत रही है वैसे-वैसे वेदना बीतती जा रही है। सम्राट ! सुबह उठा तो ऐसा लगा - वेदना समाप्त हो गई है। मैं एकदम स्वस्थ हो गया हूं । एक चमत्कार हो गया। मैंने सबको अपना संकल्प बताया- अब मैं नाथ बनूंगा, अनाथ नहीं रहूंगा। राजन! मैं परिवारजनों की अनुमति लेकर मुनि बन गया । अपना ही नहीं, सारे संसार का नाथ बन गया ।
मुनि ने कहा- 'राजन! यह मेरी अनाथता थी। दूसरा कोई किसी का नाथ नहीं बन सकता। क्या तुम स्वयं अनाथ नहीं हो?"
सम्राट क्या बोले, कुछ बोलने को शेष नहीं रहा था । क्यों होता है संघर्ष ?
प्रश्न है - शब्दों का संघर्ष क्यों होता है? हम इस पर विचार करें। भगवान महावीर ने दो नयों का प्रतिपादन किया- निश्चय नय और व्यवहार नये । होता है और हमारा काम चलता है व्यवहार नय
निश्चय नय अपना व्यक्तिगत
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