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महावीर का पुनर्जन्म जैन साहित्य : चार अनुयोग
जैन साहित्य का वर्गीकरण कर उसे चार भागों में बांटा गया१. द्रव्यानुयोग
३. गणितानुयोग २. चरणकरणानुयोग
४. धर्मकथानुयोग यह एक वैज्ञानिक वर्गीकरण है।
हम द्रव्यानुयोग की दृष्टि से धर्म पर विचार करें। द्रव्यानुयोग दार्शनिक दृष्टिकोण है, तत्व-विद्या का दृष्टिकोण है। धर्म क्या है? धर्म मूल द्रव्य नहीं है। मूल द्रव्य है आत्मा-जीव। धर्म केवल पर्याय है, इसलिए देहधारी आदमी धर्म करता है। जैसे ही वह विदेही बना, धर्म भी समाप्त हो गया। जो मुक्त आत्मा परमात्मा बन गया, उसके लिए कोई धर्म नहीं है, क्योंकि जो पर्याय था, वह समाप्त हो गया।
धर्म पर आचारशास्त्रीय दृष्टि से विचार करें। प्रत्येक व्यक्ति अच्छा जीवन जीना चाहता है। अच्छा जीवन जीने के लिए अपनी मानसिक, वाचिक
और कायिक प्रवृत्तियों का संयम करना, उनका नियमन करना जरूरी होता है। प्रवृत्तियों का नियंता है धर्म। यह है आचारशास्त्रीय स्वरूप। यह चरणकरणानुयोग
गणितानुयोग में धर्म के अनेक रूप बन जाते हैं धम क एक प्रकार है-वीतरागता। आत्मा का जो वीतराग परिणमन है, उसका नाम है धर्म। धर्म के दो प्रकार हैं-श्रुत और चारित्र। धर्म के तीन प्रकार हैं-स्वाध्याय, ध्यान और तपस्या। धर्म के चार प्रकार हैं-ज्ञान, दर्शन. चारित्र और तप। संख्या के आधार पर धर्म के असंख्य प्रकार किए जा सकते हैं।
धर्मकथानुयोग की दृष्टि से विचार करें। हमारे सामने अर्हन्नक का प्रसंग आएगा। अर्हन्नक व्यापारी था। एक बार वह बहुत से व्यापारियों के साथ समुद्र में यात्रा कर रहा था। एक आकति आसमान में उभरी। उसने कहा-अर्हन्नक! तुम धर्म को छोड़ दो वर्ना मैं तुम्हारा जहाज डुबो दूंगा। सब लोग कांपने लगे। सबने अर्हन्नक को समझाया-तुम कह दो कि मैं धर्म को छोड़ता हूं। अर्हन्नक ने कहा-धर्म मेरी आत्मा है, मेरी चेतना है। मैं अपनी चेतना को छोड़ नहीं सकता। धर्म कोई चोला नहीं है, जिसे गर्मी लगी तो उतार कर रख दिया। यह तो शाश्वत चेतना है। मैं अपनी चेतना को कभी छोड़ नहीं सकता। उस आकृति ने जहाज को अधर में उठा लिया। सब लोग कांप गए पर अर्हन्नक शांत बैठा था। देव ने कहा-'अर्हन्नक! मैं तुम्हें प्रणाम करता हूं। तुम मेरी यह तुच्छ भेंट-कुण्डल युगल स्वीकार करो।'
जिन्होंने कथाओं के माध्यम से धर्म के स्वरूप को समझा है, वे यह मानते हैं-धर्म कोई बाहरी आरोपण नहीं है, थोपा हुआ नहीं है, कृत नियम नहीं है। धर्म वास्तव में आत्मा का स्वभाव है। एक व्यवस्था होती है और एक धर्म। व्यवस्था का आरोपण होता है पर धर्म का आरोपण नहीं होता। अंगों का आरोपण हो सकता है, आत्मा का आरोपण कभी नहीं हो सकता। शरीर के एक-एक अंग का प्रत्यारोपण किया जा सकता है किन्तु क्या किसी के प्राण का
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