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पथ और पाथेय
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'जब यहां से जाऊंगा।'
'तुम भोले हो, कुछ भी साथ नहीं चलेगा ।'
‘कैसे नहीं चलेगा? मैं इन सबको ले जाऊंगा। क्या आप जानते हैं-दूध कौन-सा है, दधि और घी कौन-सा है?'
'तुम किस दूध, दधि और घी की बात कर रहे हो?
ज्ञानं दुग्धं, दधिः श्रद्धा, घृतं तच्चरणं स्मृतम्-ज्ञान मेरा दूध होगा, श्रद्धा दधि और चरित्र होगा घृत ।
ज्ञान, दर्शन, चरित्र - तीनों एक ही चीज हैं। ज्ञान को जमाओगे तो गाढ़ी श्रद्धा बन जाती है, उसका सार है-आचरण । व्यवहार में ये हमें विभाजित प्रतीत होते हैं । निश्चय नय का काम है-एक कर देना, द्वैत में अद्वैत स्थापित करना । यदि गोरस कहें तो दूध, दही और घी - तीनों एक शब्द में आ गए। अल्प वेदना : अल्प कर्म
मृगापुत्र ने कहा - 'नाना प्रकार के जो भाव हैं, वह मेरा भोज्य होगा । आप मुझे स्वीकृति दें, मैं बहुत बड़ा सम्बल साथ लेकर जाऊंगा। मुझे कोई कठिनाई नहीं होगी। मैं जहां जाकर पड़ाव करूंगा, वहां कर्म और वेदना न्यूनतम होगी । पाथेय लेकर जाने वाला व्यक्ति भूख-प्यास से पीड़ित नहीं होता। वह आराम से पथ को काट देता है वैसे ही मैं अगले जन्म में जाकर जहां पड़ाव करूंगा वहां मेरे कर्म भी कम होंगे और वेदना भी कम होगी ।'
एवं धम्मं पि काऊण, जो गच्छई परं भवं । गच्छंतो सो सुही होई, अप्पकम्मे अवेयणे ।।
यह जीवन की सफलता का आध्यात्मिक सूत्र है । वह मनुष्य जीवन सफल और आदर्श जीवन माना जा सकता है, जिसमें कर्म अल्प और वेदना अल्प होती है । वह जीवन अच्छा नहीं माना जा सकता, जिसमें कर्म बहुत होते हैं, वेदना बहुत होती है। वे कर्म-संस्कार आदमी को भटकाते हैं ।
आज के संदर्भ में हम विचार करें। बहुत अपराध, हिंसा और तनाव-ये क्यों हैं? इसका कारण है— जीवन अल्प कर्म वाला नहीं है। कर्म का मतलब है प्रवृत्ति । कर्म का अर्थ है-अपना किया हुआ अर्जित संस्कार, अपने अर्जित कर्म पुद्गल । दोनों दृष्टियों से विचार करें। जिसके कर्म ज्यादा होते हैं, वह बहुत दुःखी होता है । वह कभी मानसिक तनाव से मुक्ति नहीं पा सकता। जितना कर्म उतनी ही वेदना । अवेदना का जीवन जीने के लिए आवश्यक है कर्म का अल्पीकरण । वेदना में भी कमी तभी संभव है जब जीवन में कर्म कम होंगे, प्रवृत्ति कम होगी।
मृगापुत्र ने कहा- 'माँ ! मैं अब धर्म की साधना करना चाहता हूं । धर्म ही इस दीर्घ यात्रा का एक मात्र संबल है ।'
आज धर्म को भी एक ऐसे मिश्रण में मिला दिया कि वह भी शुद्ध नहीं है, कोरा घोल बन गया। कभी राजनीति से जोड़ दिया, कभी परलोक से जोड़ दिया, कभी समाज से जोड़ दिया। धर्म को शुद्ध मूल रूप में बहुत कम समझा जाता है।
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