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________________ २४४ महावीर का पुनर्जन्म देखा? सबको छोड़कर जा रहा है! इसके मन में कैसे जाग उठा वैराग्य? ऐसे न जाने कितने प्रकार के बोल लोगों के मुख ये निकलते हैं। लोगों की ये बातें स्वाभाविक हैं। जिस दुनिया में जी रहे हैं, जिस मनोवृत्ति में जी रहे हैं, उसमें आश्चर्य होना स्वाभाविक है। उनकी सारी धारणा बॉडी इमेज से जुड़ी हुई है। उनकी सारी कल्पना शरीर केन्द्रित है इसलिए उससे परे की बात सामने आती है तो उन्हें आश्चर्य होता है। मृगापुत्र को आश्चर्य हो रहा था-माता-पिता वृद्ध होने को आए हैं। उन्हें मेरी बात समझ में क्यों नहीं आ रही है? वे यह क्यों नहीं सोचते-मेरा पुत्र एक अच्छे मार्ग पर जा रहा है। उसको सहारा देना चाहिए। यह कहना चाहिए-तम दीक्षा ले रहे हो, हम भी तुम्हारे साथ चलते हैं। वे मुझे रोकना क्यों चाह रहे हैं? ___माता-पिता को मृगापुत्र के आचार-व्यवहार पर आश्चर्य हो रहा था और मृगापुत्र को माता-पिता के आचार-व्यवहार पर। ये दोनों प्रकार के आश्चर्य हमारी दुनिया में चलते हैं। __ सन् १९८७ की घटना है। एक मां अपने पुत्र की शिकायत लेकर मेरे पास आई। उसने कहा-'महाराज! यह बहुत आग्रही है, यह कहता है-यह नहीं खाऊंगा, वह नहीं खाऊंगा। हम सब खाते हैं और यह नहीं खाता। इससे हमें दुःख होता है। आप इसे समझाएं। हम तो अच्छी चीजें खाते हैं और यह सबका त्याग कर देता है।' ___ मैंने कहा-'क्या मैं खाने के लिए समझाऊं? त्याग और संयम तो अच्छी बात है। मेरे पास बंगाल के संभ्रांत नागरिक दत्ता साहब बैठे थे। वे निःस्पृह साधक है। उन्होंने कहा- 'तुम इसके चिन्तन में हस्तक्षेप क्यों करती हो? इसका अपना चिन्तन है, तुम्हारा अपना चिन्तन है। तुम अपने ढंग से जीओ और यह अपने ढंग से जीए। यदि तुम्हें इसकी इतनी ही ज्यादा चिन्ता है तो तुम भी ये चीजें खाना छोड़ दो।' शाश्वत स्वर माता-पिता मृगापुत्र को यह समझाना चाहते थे-तुम साधु मत बनो किन्तु उनके मन में यह भावना नहीं जगी-तुम साधु बन रहे हो तो हम भी साधु बनेंगे। ऐसे काम में साथ देना कोई नहीं चाहता। जब तक धारणा नहीं बदलती, व्यक्ति का दृष्टिकोण नहीं बदलता। जब तक व्यक्ति शरीर में बैठा हुआ है तब तक वह आत्मा में रहने वाले का साथ देना भी नहीं चाहता और दे भी नहीं सकता। शरीर की सीमाओं को समझना होगा। जब तक हम शरीर और चेतना के विभिन्न स्तरों को नहीं जानेंगे तब तक सबकी व्याख्या नहीं कर सकेंगे। आज मनोविज्ञान भी बहुत सारी समस्याओं की व्याख्या नहीं कर सकता। वह इसलिए नहीं कर सकता कि उसकी सीमा चेतना के कुछ स्तरों तक जाती है। वह आत्मा के स्तर पर अभी नहीं पहुंचा है। जब तक हम आत्मा के स्तर पर नहीं चले जाते तब तक सारे प्रश्नों का विवेचन और समाधान नहीं कर Jain Educal सकते ।ion सारे प्रश्नों का उत्तर पाने के लिए देह की सीमा को पार कर आत्मा ..
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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