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जहां एक भी क्षण आराम नहीं मिलता
२४५ की सीमा में प्रवेश करना होता है। एक आदमी के मन में नरम, गरम और मुलायम पदार्थ खाने की लालसा होती है और एक आदमी सब कुछ छोड़ कर अनशन ले लेता है। यह आश्चर्य ही है। ऐसा क्यों होता है? यह देह की सीमा से परे का स्वर है। जब व्यक्ति देह की सीमा को पार कर आत्मा की सीमा में प्रवेश करता है तब सारा चिन्तन का प्रकार, खान-पान और व्यवहार का प्रकार बदल जाता है। ऐसा ही परिवर्तन मृगापुत्र में घटित हुआ। परिवर्तन के क्षणों में निकला वह स्वर शाश्वत स्वर बन गया-मुझे इस संसार में क्षण भर के लिए भी
आनंद नहीं मिलता। मैं वहां जाना चाहता हूं, जहां आनन्द ही आनन्द है। केवल मृगापुत्र की ही नहीं, आत्मा की झलक पाने वाले प्रत्येक व्यक्ति की भाषा यही होगी। इस भाषा में शाश्वत सुख के अन्वेषण और उपलब्धि की घोषणा है, जिसका अनुभव देह की सीमा से परे जाने वाला कोई भी व्यक्ति कर सकता है।
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