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________________ जहां एक भी क्षण आराम नहीं मिलता २४३ बदल गई। धारणा बदलती है, व्यक्ति बदल जाता है, उसका आचार और व्यवहार बदल जाता है। सम्मान का अधिकारी कौन? सुल्तान महमूद गजनबी शेख अब्दुल हसन फुरवान के पास आया। शेख फुरवान प्रसिद्ध संत था। प्राचीन परम्परा रही है-शासक या सम्राट फकीरों संन्यासियों के पास जाया करते थे, उनका आशीर्वाद लेते थे। महमूद गजनवी शेख फुरवान के पास गया, उसे नमस्कार किया। जरूरत थी सुलतान को। सुलतान ने संत को प्रणाम करते हुए अशर्फियों की थैली भेंट की। संत फुरवान मुस्कुराया। उसने थैले से एक रोटी का टुकड़ा निकाला और सुलतान को दिया। सुलतान उसे सूखे और कठोर रोटी के टुकड़े को देखकर अवाक् रह गया। बेचारा सम्राट! अमीरी में पला-पुसा इस सूखे रोटी के टुकड़े को कैसे खा सकता था? पर करता भी क्या? खाने के सिवाय कोई विकल्प ही नहीं था। सम्राट रोटी के टूकड़े को मुंह के पास ले गया, उसे दांतों पर रखा। न वह रोटी को तोड़ पा रहा था और न खा पा रहा था। संत फुरवान ने कहा-'सुलतान! रहने दो। यह रोटी तुम्हारे काम की नहीं है और तुमने जो थैली यहां रखी है, वह मेरे काम की नहीं है।' सुलतान को अपनी भूल का अहसास हुआ। मैंने संत को अशर्फियों की थैली भेंट कर भूल की है। कुछ क्षण बीते। सुलतान जाने लगा। फकीर अपने आसन से उठा। सुलतान यह देख विस्मित रह गया-मैं आया तब शेख अकड़ कर बैठा था और अब जा रहा हूं तो सम्मान कर रहा है। सुलतान से रहा नहीं गया, उसने पूछा-'दीदारप्रवर! यह क्या? मैं आया तब आप बैठे रहे और मैं जा रहा हूं तब सम्मान में खड़े हो गए।' पहले तुम सम्मान के अधिकारी नहीं थे और अब सम्मान के अधिकारी बन गए हो?' 'संतवर! इसका रहस्य क्या है? पहले मैं सम्मान का अधिकारी क्यों नहीं था और अब कैसे हूं?' ___'सुलतान! जब तुम आए तब तुम्हारे सिर पर अशर्फियों का अहंकार सवार था। मैं किसी अहंकारी को सम्मान नहीं देता। अब जब तुम जा रहे हो तब अहंकार का भूत तुम्हारे सिर से नीचे उतर गया है। तुम विनम्र बन गए हो। विनम्रता को सम्मान देना एक फकीर का कर्तव्य है इसलिए मैं तुम्हें सम्मान दे रहा हूं।' दो प्रकार की अवधारणाएं, कल्पनाएं, मनोवृत्तियां या दो प्रकार की दुनिया है। एक प्रकार की दुनिया का चिन्तन और कल्पना अलग होती है दूसरे प्रकार की दुनिया की कल्पना और चिन्तन अन्यथा प्रकार का होता है, इसलिए जब दस-पन्द्रह वर्ष का बालक दीक्षा लेता है, तब लोग आश्चर्य करते हैं। दीक्षा लेते हैं एक या दो व्यक्ति और आश्चर्य होता है सब लोगों को। वे कहते हैं-देखो! बेचारा दीक्षा ले रहा है। इसने क्या सुख भोगा? दुनिया में आकर क्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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