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प्रतिक्रमण
महावीर का पुनर्जन्म
सम्मोहन के कुछ प्रयोग किए गए। एक व्यक्ति को सम्मोहित किया, उसे अतीत को देखने का सुझाव दिया। दो वर्ष तक की अवस्थाओं की स्मृतियां सजीव हो गईं। जैसे-जैसे सम्मोहन या सुझाव द्वारा, आत्म-संवेदन द्वारा मूर्च्छा टूटती चली जाती है वैसे-वैसे अतीत की स्मृति तीव्र होती चली जाती है । दो वर्ष की ही नहीं, एक वर्ष की और उससे पहले की भी स्मृति में व्यक्ति लौट सकता है। सम्मोहन के प्रयोग द्वारा ऐसी अनेक घटनाएं उजागर हुई हैं । प्रतिक्रमण की भी यही प्रक्रिया है । हम यथाक्रम आलोचना करें। सुबह चार बजे उठने के बाद से लेकर सायंकाल तक क्या-क्या किया, उसकी स्मृति और आलोचना करें। प्रातः और सायं प्रतिक्रमण का अर्थ यही है । प्रतिक्रमण यानि अतीत की स्मृति करते चले जाओ-आज मैंने किस क्षण क्या-क्या किया? अतीत के सिंहावलोकन की, अतीत की ओर प्रस्थान की यह प्रक्रिया मूर्च्छा को तोड़ने की प्रक्रिया है । यदि प्रतिक्रमण नहीं होता है तो मूर्च्छा गहरी होती चली जाएगी। इस दृष्टि से प्रतिक्रमण का बहुत महत्त्व है । हम इसे रूढ़ि न मानें, इसका समुचित मूल्यांकन करें। जब तक प्रतिक्रमण के महत्त्व को नहीं जाना जाता तब तक ही उसे रूढ़ि के रूप में लिया जाता है। अच्छी चीज रूढ़ि बन जाती है, इसका बड़ा कारण है अज्ञान ।
एक प्रशासक को कृषि विभाग का अधिकारी बनाया गया। अधिकारी को सूचना मिली - आलू की फसल बहुत बढ़िया हुई है। अधिकारी फसल का निरीक्षण करने के लिए आया। उसने देखा - आलू के खेत हरे भरे हैं । आलू एक भी दिखाई नहीं दे रहा है। वह चारों तरफ घूमा, निराश हो गया। उसने क्षुब्ध होकर कर्मचारियों से कहा- तुमने मुझे गलत सूचना दी है, मुझे धोखे में रखा है। तुम कह रहे थे- 'आलू की फसल बहुत बढ़िया हुई है और यहां एक भी आलू दिखाई नहीं दे रहा है।' कर्मचारी और काश्तकार देखते रह गए - कैसा अधिकारी आया है? इसे इतना भी पता नहीं कि आलू कहां होते हैं । एक कर्मचारी ने मुस्कराते हुए कहा - 'श्रीमान् ! आलू ऐसे ऊपर दिखाई नहीं देते हैं । उन्हें देखने के लिए जमीन को थोड़ा-सा कुरेदना होगा ।' उसने आलू के एक पादप को उखाड़ते हुए कहा - ' देखिए, आलू ही आलू हैं।' अधिकारी का सिर शर्म से नीचे झुक गया। वहीं खड़े एक व्यक्ति ने व्यंग्य किया- 'महाशय' हमने गलत सूचना नहीं दी है। गलती हमारी नहीं है, गलती तो उनकी है जिन्होंने आपको कृषि विभाग का अधिकारी बना दिया ।' प्रतिक्रमणः अतीत में लौटते का प्रयोग
हमारा ज्ञान भी फसल के नीचे उगाया हुआ है। वह उसके फल को जानने नहीं देता । यदि अज्ञान और मूर्च्छा का पर्दा हट जाए तो अतीत को जानना आसान हो जाए। अतीत की घटनाओं को जानना, अतीत के लिखे ग्रन्थों को जानना एक ही बात है। मूल बात यह है— हम जिस दिशा में प्रस्थान करेंगे, वह दिशा स्पष्ट हो जाएगी। हजार वर्ष पहले किसी ने काव्य लिखा, आज हम उसका अर्थ पकड़ते हैं । यह क्या है? यह इन्द्रिय का काम तो नहीं है? यह
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