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याद पिछले जन्म की
कोई अतीन्द्रिय ज्ञान है हजार वर्ष पहले लिखे अर्थ को पकड़ना । आज का वैज्ञानिक दो हजार वर्ष, पांच हजार वर्ष पूर्व लिखी गई लिपि को पकड़ने का प्रयत्न कर रहा है, उसका अर्थ खोज रहा है। कोई वैज्ञानिक पशुओं की भाषा को पढ़ रहा है, कोई चिड़िया और कबूतर की भाषा को पढ़ रहा है । प्रत्येक व्यक्ति में यह क्षमता होती है। जब व्यक्ति अतीत में लौटता है, तब उसे बहुत सारे नए तथ्य मिलते हैं । प्रतिक्रमण अतीत में लौटने का महत्त्वपूर्ण प्रयोग है, इसके द्वारा अनेक नई दिशाएं उद्घाटित हो सकती हैं।
अपेक्षा है- हम अतीत में लौटना सीखें, वर्तमान में जीना सीखें और भविष्य का सपना देखना सीखें । हम सौरमण्डल के वातावरण में जी रहे हैं इसलिए एक काल में जीकर हम पूरी बात नहीं कर सकते। जिन लोगों ने अतीत में लौटना सीखा है, उन्हें पूर्व जन्म की स्मृतियां हुई हैं या अन्य विशेष क्षमताएं उपलब्ध हुई हैं । क्षमता एक प्रकार की नहीं होती ।
आचार्य हेमचन्द्र, आचार्य मलयगिरी और आचार्य अभयदवेसूरी-— तीनों ने एक साथ सरस्वती की आराधना की, सरस्वती सिद्ध हो गई। सरस्वती ने प्रसन्न होकर कहा - वरदान मांगो। आचार्य हेमचन्द्र ने कहा- ' - 'मुझे राजाओं का प्रतिबोध देने की क्षमता दो।' उनका प्रयत्न इस दिशा में चल पड़ा। आचार्य मलयगिरी ने कहा - 'मैं आगमों की टीकाएं लिखूं।' उन्होंने अपनी शक्ति का नियोजन उस दिशा में किया और समर्थ टीकाकार कहलाए। आचार्य मलयागेरी आज भी आगम के समर्थ टीकाकार और व्याख्याकार माने जाते हैं! दुर्लभ हैं ऐसे टीकाकार । आचार्य अभयदेवसूरी ने कहा- 'मुझे वह सामर्थ्य दो मैं अंगों की टीकाएं लिखूं ।' उन्होंने नौ अंगों की टीकाएं लिखीं और नवांगी टीकाकार' के रूप में ख्याति प्राप्त की। दो अंगों की टीकाएं उनके पूर्वज आचार्य लिख चुके थे ।
प्रश्न है- हम किस दिशा में अपनी शक्ति का नियोजन करें, अपनी क्षमता का विकास करें। मृगापुत्र को केवल जातिस्मृति की घटनाएं जानने के लिए न पढ़ें किन्तु अपनी क्षमताओं का विकास कर सकें, इसलिए पढ़ें। ऐसा करने पर ही हम आगम के दर्पण में अपना प्रतिबिम्ब देख सकेंगे, स्वयं को अधिक सक्षम और सम्पन्न बना सकेंगे ।
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