________________
अनुशासन के सूत्र
गई--'खर्च का भाग बड़ा।' दान के साथ कुछ जुड़ा हुआ है। कृपणता से लक्ष्मी भी घबराती है।
उदारता बहुत बड़ा गुण है। जो भाव पक्ष को देखता है, वह उदार होता है। जो अभाव पक्ष को देखता है, वह कृपण होता है। जो भाव और अभाव-दोनों में प्रसन्न रहना सीख लेता है, सम रहना सीख लेता है वह अनुशासन में रहना सीख लेता है। जो अनुशासन में रहना सीख जाता है, वह समता और प्रसन्नता को पा लेता है। अनुशासन की बाधा : अभाव का दर्शन
सामाजिक एवं संघीय जीवन में भाव पक्ष को देखने वाला कभी विचलित नहीं होता। जो अभाव को देखता है, वह अनुशासन में स्थिर नहीं हो सकता। साधु-साध्वियों का ही सन्दर्भ लें। एक मुनि को दस-बीस वर्ष तक दिल्ली, जयपुर, जोधपुर जैसे क्षेत्रों में वर्षावास का अवसर मिला किन्तु यदि उसे एक वर्ष छोटे गांव में भेज दिया जाए तो उसका परिणाम होगा-जो बीस वर्ष तक मिला, उसका कोई चिन्तन नहीं और जो एक वर्ष नहीं मिला, वह सब कुछ बन जाएगा। एक मुनि को पचास वर्ष तक अच्छे से अच्छे साधु का योग मिलता रहा
और एक वर्ष कोई सामान्य साधु मिल जाए तो वह कहेगा-आचार्यश्री हमारा ध्यान ही नहीं रखते। मैंने संघ की इतनी सेवा की। आखिर उसका फल यह मिला है-इस साधु को मेरे साथ दे दिया। वह इन छोटी-छोटी बातों से अनास्थाशील बन जाता है, अनुशासनहीन बन जाता है। उसकी प्रसन्नता और समता विनष्ट हो जाती है। यह अभाव का दर्शन अनुशासन की बड़ी बाधा है। जो इस बाधा को पार कर देता है, वह अनुशासन में जीना सीख लेता है। भाव पक्ष को देखने वाले का मन विचलित नहीं होता, सन्तुलित बना रहता है और यह सन्तुलन ही उसके जीवन को स्थिरता प्रदान करता है, समता एवं प्रसन्नता से भर देता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org