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राजर्षियों की परंपरा
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प्रशिक्षण दिया जा रहा है। मेरे मन की प्रबल भावना है-मैं आपकी सन्निधि में आकर उसका प्रशिक्षण लूं।' जीवन शैली का ज्ञान बहुत महत्त्वपूर्ण है। हम राजर्षियों के इतिहास को केवल पढ़ने की दृष्टि से न पढ़ें। हम इतना ही न माने-राजा भरत भारत वर्ष के राज्य को त्याग कर मुनि बने, राजा सनत्कुमार भी राज्य त्याग कर मुनि बन गए। राजा दर्शाणभद्र और उद्रायण भी राज्य को त्याग मुनि बने। शांतिनाथ भी चक्रवर्तित्व को छोड़कर मुनि बने, जिनका नाम मंगल मंत्र बना हुआ है। उनके नाम से जुड़ा प्रसिद्ध मंत्र है
चइत्ता भारहं वासं चक्कवट्टी महिड्ढियो।
संती संतिकरे लोए, पत्तो गइमणुत्तरं।। जीवन की नई दिशा
हम केवल मंत्र और परम्परा की दृष्टि से ही नहीं, जीवन शैली की दृष्टि से विश्लेषण करें। जर्मन विचारक नीत्से ने कहा था-'एक व्यक्ति जिस विचार में जन्म लेता है, उसी विचार में मर जाता है। किसी विचार में जन्म लेना नियति है किन्त उसी विचार में मरना मुर्खता है। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि सब गृहस्थी को छोड़कर साधु बन जाएं। यह बहुत कठिन काम है और सबके लिए संभव नहीं है पर कम से कम व्यक्ति गृहस्थी में न मरे। इसका तात्पर्य है-या तो मुनिदीक्षा को स्वीकार करे और ऐसा न कर सके तो घर के प्रपंचों से सर्वथा मुक्त हो, त्याग-वैराग्य का, संन्यास जैसा जीवन जीना शुरू कर दे। वह गृहस्थी के झंझटों में न रहे। यह एक बहुत अच्छी जीवन शैली है। यदि ऐसा होता है तो न पुत्र पिता का तिरस्कार करेंगे, न पिता के मन में घर के प्रति द्रोह जन्मेगा। उसे यह कहना नहीं पड़ेगा—मैंने किस आशा से बेटों को पाल पोषकर बड़ा किया था। आज बेटे मुझे पूछते ही नहीं है। जैसे ही पक्षी के पंख आते हैं, वे विभिन्न दिशाओं में उड़कर माता-पिता से दूर चले जाते हैं। शायद पक्षी भी यह सोचते होंगे-इन्हें कितने परिश्रम से पाला, पोषा, बड़ा किया। आज पंख आते ही हमें छोड़कर चले गए। जिन लड़कों को प्रेम से पाला-पोषा, बड़ा किया जाता है, पढ़ाया जाता है वे जब बड़े होते हैं तब सबसे पहले चूल्हे अलग जलते हैं। पिता-माता गांव में रहते हैं और पुत्र अपनी पत्नी के साथ प्रदेश चला जाता है। शायद कई बार पिता-पुत्र वर्षों तक मिलते ही नहीं हैं। कभी-कभी तो पिता पुत्र कोर्ट में ही मिलते हैं। इस स्थिति में जीवन-शैली में परिवर्तन आवश्यक
है।
मोह कम करें
__ सबसे महत्त्वपूर्ण बात है-घर का मोह कम हो जाए। अलगाव का-सा जीवन जीया जाए। व्यापार चल रहा है, पुत्र दुकान पर बैठते हैं पर वह उसमें लिप्त न हो। घर में रहना गृहस्थी नहीं है। गृहस्थी का मतलब है घर में लिप्त हो जाना। व्यक्ति घर में इतना लिप्त हो जाता है कि मृत्यु-शय्या पर भी उसका मोह नहीं छूटता।
__ पिता की मौत सन्निकट थी। सारे पुत्र पिता की सेवा में उपस्थित थे। पिता ने आंखें खोली, देखा-बड़ा लड़का भी यहीं बैठा है, मझला और छोटा For Private & Personal Use Only
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