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महावीर का पुनर्जन्म
है। इस तथ्य में भी अब संशोधन करना चाहिए। कुछ मनुष्य खतरे से अनजान होते हैं, परन्तु बहुत से छोटे प्राणी खतरे को बहुत पहले भांप जाते हैं। यह प्राणी में अतीन्द्रिय चेतना होने का प्रमाण है। ज्वालामुखी फटने वाला है, सारे प्राणी वहां से चले जाएंगे। उनके भागने के आधार पर अनुमान किया जाता है कि ज्वालामुखी फटने वाला है। वेकस्टर ने वनस्पति पर बहुत प्रयोग किए। इस सन्दर्भ में उनकी एक पुस्तक है—माडर्न रिसच। उसने सात व्यक्तियों को पौधे के पास भेजा। पौधे शात बने रहे। फिर उस व्यक्ति को भेजा, जिसकी मनोवृत्ति पौधों को तोड़ने-मोड़ने की थी। वह व्यक्ति जैसे ही पौधों के सामने आया, गेल्वेनोमीटर की सूई घूमने लग गई। पोलिग्राफ पर भय जताने वाली रेखाएं अंकित हो गई। भय को भांपने की बुद्धि हर छोटे प्राणी में होती है। त्रस की गति ही यह बता देती है कि वे भयभीत होते हैं। त्रसिताः पलायिताः-वे भय से पलायन कर जाते हैं। पलायन एक प्रवृत्ति है। उसका संवेग है-भय। डर जरूरी भी है
हर व्यक्ति में भय और अभय-दोनों होते हैं। अभय आवश्यक है तो भय भी आवश्यक है। कहा गया—'भय बिनु प्रीति न होय।' यह भी एक सचाई है। प्रीति भय के बिना नहीं होती। भय निकल गया और चेतना जागी नहीं तो व्यक्ति उदंड, आक्रामक बन जाएगा। हमारे संवेग भी नियामक होते हैं। समाज भय के आधार पर चलता है, राज्य भय के आधार पर चलता है क्योंकि भय नियामक होता है। इसका निदर्शन है यह श्लोक
हर डर गुरु डर गांव डर, डर करणी में सार। __ तुलसी डरै तो उबरै, गाफिल खावै मार।।
कब, किसने डरना चाहिए और कब नहीं डरना चाहिए? इसमें विवेक और बुद्धि की जरूरत है। जहां मूढ़ात्मा विश्वस्त है, वहां व्यक्ति के लिए उससे बड़ा कोई भय और खतरा नहीं होता। जो भयभीत है, उसके लिए अभय का कोई दूसरा स्थान नहीं है।
मूढात्मा यत्र विश्वस्तः ततो नान्यद् भयस्पदम् ।
यतो भीतस्ततो नान्यद, अभयस्थानमात्मनः।।
आदमी धन में बहुत विश्वास करता है। वह सोचता है-धन काम आएगा पर पता नहीं वह उसके काम आएगा, या औरों के काम आएगा। जो अभय देने वाला स्थान है, उससे वह घबराया हुआ रहता है और जो भय का स्थान है, उसे अभय का स्थान मान लेता है। यह विपर्यय भय का सबसे बड़ा कारण है। अभय है आत्मस्थ
अभय को छोड़कर महावीर की और महावीर को छोडकर अभय की व्याख्या नहीं की जा सकती। अभय का दूसरा कारण बनता है-आत्मस्थ हो जाना। जहां बुद्धि का विकास बढ़ता है, वहां आदमी झूठे भयों से मुक्त होता चला जाता है। माताएं बच्चों को अपने स्वार्थ के लिए हौवा का डर बहुत
दिखाती हैं, परिणामतः बच्चे कमजोर और डरपोक बन जाते हैं। यदि किसी Jain Education International For Private & Personal Use Only
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