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________________ 2 २१८ महावीर का पुनर्जन्म लग जाती हैं, वैसे ही साधुता जैसी पवित्र शक्ति किसी असाधुचरित व्यक्ति के पास चली जाती है तो सिसकने लग जाती है । महावीर ने मार्गदर्शन दिया - हर साधु सावधान रहे, साधुता को सिसकने न दे। एक साधक मुनि धर्म की आराधना करता है, पांच महाव्रतों को ठीक पालता है, किन्तु वह व्यवहार में कुशल नहीं है, शांतिपूर्ण जीवन जीना नहीं जानता है तो साधुता सुबक उठती है। मुनि-जीवन में समस्या पैदा हो जाती है । भगवान् महावीर ने पुण्यश्रमण के लिए जो बातें बतलाई हैं, उनमें कोरे महाव्रत ही नहीं हैं, पूरी जीवन की शैली का निरूपण है। मुनि एक प्रकार की जीवन-शैली अपनाकर पुण्यश्रमण बन जाता है । बड़ा कौन बनता है पूज्य कालूगणी टमकोर से राजगढ़ पधार रहे थे। एक दिन मध्यवर्ती छोटे ग्राम में ठहरे। शाम का समय था । मैं और मेरे सहपाठी मुनि बुद्धमल्लजी आचार्यश्री की उपासना में बैठे थे । कालूगणी ने कहा- 'तुम बड़ा बनना चाहते हो या छोटा?' हमने तत्काल कहा - 'बड़ा' प्रत्येक आदमी बड़ा होना चाहता है, छोटा होना कोई नहीं चाहता । कालूगणी ने कहा- 'लो! तुम यह श्लोक सीखो - बालसखित्वमकारणहास्य, स्त्रीषु विवादमसज्जनसेवा गर्दभयानमसंस्कृतवाणी, षट्सु नरो लघुतामुपयाति ।। बाल सखित्व, अकारण हास्य, स्त्रियों से विवाद, दुर्जन की सेवा, गधे की सवारी और असंस्कृत भाषा - इन छह कारणों से व्यक्ति लघुता को प्राप्त होता है ।' जो बच्चों के साथ ज्यादा हंसी-मजाक करता है या मित्रता करता है, जो अकारण हंसता है, बात-बात पर हंसता है, ऐसा व्यक्ति छोटा बन जाता है। जो व्यक्ति स्त्रियों के साथ विवाद करता है, वह भी छोटा बन जाता है । पुरुष को बड़ा माना जाता है और स्त्री को छोटा । स्त्री के साथ विवाद करे और जीत जाए तो लोग कहेंगे- आखिर स्त्री को ही तो जीता, क्या बड़ा काम किया? हार जाएगा तो लोग कहेंगे- नपुंसक है, स्त्री से हार गया । दोनों ओर से हानि है । कहीं भी विजय की बात नहीं । शायद इसी अपेक्षा से कहा गया होगा - स्त्रियों के साथ विवाद करना छुटपन का कार्य है । इस संदर्भ को व्यापक रूप दिया जा सकता है। स्त्रियों के साथ ही नहीं, किसी भी व्यक्ति के साथ विवाद करने वाला छोटा बन जाता है । यदिच्छसि गुरोर्भाव, विवादं त्यज दूरतः । आग्रहेन विवादेन, लघुतां मानवो व्रजेत् ।। यदि तुम महान् बनना चाहते हो तो विवाद को छोड़ दो । विवाद से मनुष्य छोटा बन जाता है 1 मनुष्य की मनोवृत्ति आग्रह और महावीर ने कहा- जो शांत हुए विवाद को फिर से उभारता है, जो सदाचार से शून्य होता है, जो कुतर्क से अपनी प्रज्ञा का हनन करता है, जो कदाग्रह और कलह में रत होता है, वह पापश्रमण कहलाता है । कुछ व्यक्तियों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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