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महावीर का पुनर्जन्म
ऐसा प्रयास करें - नियन्त्रण स्वयं उदात्तीकरण की दिशा में आगे बढ़ता चला जाए। हमारी चेतना अधिक से अधिक स्वाध्याय, ध्यान और आत्म- गवेषणा में लगे। जैसे-जैसे चेतना का नियोजन इन सबमें होगा, अन्य बातें गौण होती चली जाएंगी। विकास की दिशा में आगे बढ़ते हुए, वर्जनाओं और निमित्तों का ध्यान रखते हुए अपनी चेतना को पवित्र और निर्मल बनाते चले जाएं, ब्रह्मचर्य सिद्ध हो जाएगा । ब्रह्मचर्य केवल उपस्थ का संयम ही नहीं है । उसका अर्थ है- इन्द्रियों का संयम । उसका व्यापक अर्थ है आचार । जीवन का आचार, ब्रह्मचर्य का आचार या ब्रह्म विद्या का पूरा विकास होगा तो जीवन में एक नया तेज और एक नई अनुभूति का आविर्भाव होगा ।
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