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महावीर का पुनर्जन्म
एक घटना है - एक व्यक्ति ने पहले अपने आपको पकाया । ब्रह्मचर्य को सिद्ध किया । फिर उसका परीक्षण किया। वह पहले दिन वेश्या के पास गया। वेश्या उसके सामने बैठ गई। वह वेश्या के रंग-रूप और लावण्य को देखता रहा किन्तु उसके मनोबल में न्यूनता नहीं आई। दूसरे दिन वह वेश्या के पास बैठ गया फिर भी मन विचलित नहीं हुआ । चौथे दिन उसने वेश्या का स्पर्श किया, उसके शरीर से सटकर बैठ गया फिर भी मन विचलित नहीं हुआ। कुछ दिन ऐसा अभ्यास चला। उसके बाद उसने वेश्या को अर्द्धनग्न अवस्था में देखा और एक दिन वेश्या को निर्वस्त्र कर अपनी गोद में बिठा लिया। उसका मन अडोल रहा । ब्रह्मचर्य सिद्ध हो गया ।
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इस घटना का निष्कर्ष निकाला गया- वह व्यक्ति संन्यासी होना चाहता था इसलिए अपने आपको साध रहा था । हम इस प्रश्न पर विचार करें और अपनी परिपक्वता को बढ़ाएं। इस दृष्टि से जो महत्त्वपूर्ण नियम हैं, उसमें से कुछ पर विमर्श करें, यह अपेक्षित है ।
आहार और ब्रह्मचर्य
भोजन के संदर्भ में दो नियम हैं-प्रणीत और अतिमात्र भोजन न करें । शायद ही अध्यात्म का कोई ऐसा विषय होगा, जिसके साथ भोजन की बात न जुड़ी हुई हो। भोजन बहुत प्रभावित करता है । तंत्र शास्त्र में इस विषय पर बहुत नई दृष्टियां मिलती हैं । एक नया दर्शन तंत्र - शास्त्र में दिया गया-पांच ज्ञानेन्द्रियों के साथ पांच कर्मेन्द्रियों का सम्बन्ध है । उपस्थ का सम्बन्ध है जीभ के साथ । रसनेन्द्रिय को जितना पोषण मिलेगा उतना पोषण मिलेगा जननेन्द्रिय को । रसनेन्द्रिय और जननेन्द्रिय में गहरा सम्बन्ध है ।
बहुत मनन के बाद यह नियम बनाया गया - प्रणीत और अतिमात्र भोजन का वर्जन करें। ज्यादा भी न खाएं और रोज-रोज गरिष्ठ भोजन न करें। दूध, दही, घी आदि जितनी विकृतियां हैं, वे शरीर के लिए आवश्यक भी होती हैं किन्तु ये बाधक भी बनती हैं। आयुर्वेद का एक सिद्धांत है-बल बढ़ाना है तो दूध पीओ। दूसरा सिद्धांत यह आया है - दूध मनुष्य के लिए आवश्यक नहीं है, वह केवल बच्चों के लिए आवश्यक है। दूध हृदय रोग को भी बढ़ाता है । किसे सच मानें? दुनियां में विचारों की इतनी संकुलता है कि किसे स्वीकारा जाए और किसे अस्वीकारा जाए? एक विचार को पकड़कर बैठ जाएं तो बड़ी समस्या हो जाती है इसीलिए कहा गया- यत् सारभूतं तदुपासनीयम् - जो सारभूत है, उसकी उपासना करें ।
ध्यान दें उपादान पर
अनेकान्त दर्शन का तात्पर्य है-हम किसी एक विचार को पूरा सत्य मानकर न बैठें। हम यह मानें – दुनिया में विचारों की बहुत संकुलता है । समाधान यही है—हम स्वयं सत्य खोजें। विचारों को सुनें, जानें और स्वयं खोज करें । ब्रह्मचर्य के क्षेत्र में भी विचारों की कमी नहीं है । इन्द्रियों का संयम कैसे करें? कितना करें? क्यों करें? वर्तमान युग में ही नहीं, महावीर के युग में भी इस संदर्भ में अनेक विचित्र विचार उभरे थे। सूत्रकृतांग सूत्र को पढ़ने वाला इस
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