________________
२०६
महावीर का पुनर्जन्म
होनी चाहिए कि साधु समाज चाहे जो करता रहे और श्रावक समाज सोया रहे। श्रावक समाज यह न सोचे-साधु जाने साधु का काम जाने, हमसे तो कुछ अच्छे ही हैं साधु । जिस दिन यह बात श्रावक समाज सोचेगा, उस दिन जैन समाज का अस्तित्व ही खतरे के बिन्दु पर पहुंच जायेगा। खतरे के बिन्दु से सावधान रहना जरूरी है। यदि वहां असावधानी होगी तो विनाश अवश्यंभावी हो जाएगा।
नदी में बाढ़ आ गई। कर्मचारियों ने अधिकारियों को जानकारी दी। पानी खतरे के बिन्दु के पास आ गया है। अब क्या करें? अधिकारी प्रमादी था। उसने कहा-'चिन्ता मत करो। खतरे के बिन्दु को तीन फीट ऊंचा कर दो।'
कितनी मूर्खता है! खतरे के बिन्दु को ऊपर करने से क्या होगा? यदि समाज प्रमादी बन जाए तो समस्या का समाधान नहीं हो सकता। आचार्य भिक्षु ने तेरापंथ समाज में जागरूकता के संस्कार-बीज बोए। समाज में कुछ भी अवांछित होता है, श्रावक समाज की ओर से प्रश्न प्रस्तुत हो जाते हैं। आचार्य भिक्षु ने श्रावक समाज के हाथ में एक डंडा पकड़ा दिया-किसी साधु में दोष देखो तो छिपाओ मत, तत्काल उसे जता दो, गुरु को जता दो। श्रावक समाज को
धिकार दे दिया। कोई साध-साध्वी अवांछनीय आचरण करता है तो श्रावक-समाज तत्काल जागरूक बन जाता है। वह उस बात को गुरु तक पहुंचा देता है। साधु-साध्विया बाद में पहुंचते हैं, उनकी शिकायत पहले ही पहुंच जाती है। यह जागरूकता साधु-साध्वियों के स्वस्थ एवं निर्दोष आचरण का हेतु बनती
अकेला चले
महावीर ने साधु की जो कसौटिया बतलाई, वे जागरूकता की कसौटिया हैं। उत्तराध्ययन सूत्र के पन्द्रहवें अध्ययन में चालीस से भी अधिक कसौटियों का उल्लेख है। उनमें कुछ आन्तरिक कसौटियां हैं और कुछ बाह्य। प्रस्तुत प्रसंग में मैं दो-तीन कसौटियों की चर्चा करना चाहता हूं। साधु की एक कसौटी है-अकेला होना। जो घर को छोड़कर अकेला चलना जानता है, उसका नाम है साधु । घर छोड़ने मात्र से कोई साधु नहीं बनता। जो केवल घर छोड़कर साधु बनता है और अकेला चलना नहीं जानता, उसकी साधुता में कमी आ जाएगी। बहुत बड़ी साधना है अकेला चलना। आचार्य भिक्षु ने कहा था-मरण धार सुध मग लह्यो। उन्होंने संकल्प किया-'मैं शुद्ध मार्ग पर चलूंगा, चाहे मैं अकेला रह
।' जब तक यह एगचारिता का संकल्प दृढ़ नहीं होता, तब तक साधुता की बात पूरी आती नहीं है।
__ एक राजा ने कहा-साधुओं का भी कोई टोला नहीं होता। शेर का कभी टोला नहीं बनता। वह अकेला चलता है। भेड़-बकरियों का टोला होता है। हाथियों का ग्रुप होता है। मनुष्यों का समाज होता है पर साधु, जिसने दुनिया को छोड़ दिया, घर बार छोड़ दिया, उसका क्या टोला होता है? साधु और शेर का कोई टोला नहीं होता।
उस समय इस प्रश्न का उत्तर क्या दिया गया, नहीं कहा जा सकता पर आज इस प्रश्न का उत्तर दिया जा सकता है। वह उत्तर अनेकान्त की भाषा में Jain Education International For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org