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________________ साधुत्व की कसौटी २०५ __ यह चित्र बहुत यथार्थ है। ऐसा लगता है-आज फिर एक बार आचार्य भिक्षु के जन्म लेने की जरूरत है। ऐसा कोई साहसी, अभय और सत्य का प्रवक्ता उभरे, जो साधु-समाज को पतन से बचा सके। इसके लिए सगुण भाषा का प्रयोग भी करना पड़े तो करना चाहिए। अगुण भाषा प्रसिद्ध समाजवादी चिन्तक डाक्टर राममनोहर लोहिया ने आचार्यवर से प्रार्थना की-आप मुनि नथमलजी (युवाचार्य महाप्रज्ञ) को भिक्षा के लिए मेरे घर भेजिए। मैं डा० लोहिया के घर गया। अनेक संत और श्रावक साथ थे। हम उनके घर थोड़ी देर रुके। बातचीत चल पड़ी। मैंने कहा-'डा० साहब! आपकी काफी बातें पसन्द हैं, पर एक बात अच्छी नहीं लगती।' डा० लोहिया ने कहा- 'मुनिजी! लगता है-आप भी प्रवाह में बह गए। किसी ने बहका दिया है आपको।' मैंने कहा-'डा० साहब! मैं किसी के कहने से नहीं कह रहा हूं।' डाक्टर लोहिया ने पूछा-'आपको कौन सी बात अच्छी नहीं लगी?' मैंने कहा- 'आप कटु बोलते हैं। कभी-कभी लोकसभा में भी हल्के शब्दों का प्रयोग कर लेते हैं। आप जैसा व्यक्ति इस प्रकार बोले, यह अखरने जैसी बात है।' डा० लोहिया सुनते ही जोश में आ गए। वे तत्काल अपने अध्ययन कक्ष से कुछ फाइलें उठाकर ले आए। उन फाइलों को मेरे सामने रखते हुए डा० लोहिया ने कहा- ये मेरी लोकसभा में दिए गए भाषणों की फाइलें हैं। आप बताइए-मैंने कौन से ऐसे शब्द का प्रयोग किया है, जो कट है। आप जिस शब्द के लिए कहेंगे, मैं उसे निकाल दूंगा।' डा० लोहिया ने कहा- 'मुनिजी! पूजा उपासना की दो पद्धतियां चल रही हैं-सगुण उपासना और निर्गुण उपासना। सगुण उपासना वाले मूर्ति बनाकर पूजा करते हैं, निर्गुण वाले कोरा अमूर्त का ध्यान करते हैं। आम आदमी अमूर्त को नहीं समझता। उसके लिए सगुण उपासना का अधिक महत्त्व है। उसके सामने कोई आकार होना चाहिए। मैं लोकसभा में किसी को गाली नहीं देता, किन्तु सगुण भाषा बोलता हूं ताकि वह बात किसी को चुभ जाए। यदि निर्गुण भाषा बोलूंगा तो मेरी बात कोई सुनेगा ही नहीं।' श्रावक समाज की जागरूकता आचार्य भिक्षु ने जिस भाषा का प्रयोग किया, वह अवश्य ही सगुण भाषा रही है। उन्होंने जो कुछ कहा, वह जनता को प्रभावित कर गया। आज जिस प्रकार जैन परम्परा में विकार आना शुरू हुआ है, यह आवश्यक हो गया है कि सगुण भाषा बोली जाए। सन् १९८६ में कुछ जैन मूर्तिपूजक मुनि विदेश यात्रा के लिए जाना चाहते थे। इस प्रश्न को लेकर बम्बई जैन समाज में काफी हलचल मच गई। जैन समाज के अग्रणी व्यक्तियों ने कहा-'यदि आप विदेश जाना चाहते हैं तो जाइए पर इस वेश में नहीं। साधुत्व का वेश उतार दीजिए और जैन धर्म के प्रचारक बन कर जाइए।' इस घटना के संदर्भ में आचार्यवर ने बम्बई वासियों को एक संदेश प्रदान किया-'आज आपने जैन साध्वाचार को लेकर एक प्रश्न खड़ा किया है, वह बहुत जरूरी है। बम्बई का समाज जागरूक समाज है। आपकी जागरूकता की मैं प्रशंसा करता हूं।' यह स्थिति कभी नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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