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________________ साधुत्व की कसौटी २०३ सैकड़ों प्रकृतियां हैं, उनके सैकड़ों प्रकार के प्रकम्पन हैं, प्रत्येक प्रकम्पन ने अपना-अपना एक-एक स्थान बना रखा है। जिस-जिस प्रकृति का विपाक आता है, उस उस प्रकृति के प्रकम्पन स्थूल शरीर में आते हैं। उन प्रकम्पनों को क्रियान्वित करने के लिए उतनी ही चौकियां स्थूल शरीर में बनी हुई हैं। हमारी नाभि (तैजस केन्द्र) के पास दो ग्रन्थियां हैं-एड्रीनल और गोनाड्स। कामवासना का केन्द्र है गोनाड्स और कषाय की अभिव्यक्ति का केन्द्र है एड्रीनल ग्लेण्ड। नाभि के आसपास ये दो मजबूत चौकिया हैं। जब मनुष्य की चेतना नाभि के आसपास काम करती है तब ईर्ष्या, भय, क्रोध, कलह आदि वत्तियां जागती रहती हैं। पुराने आचार्यों ने अनेक कल्पनाएं की नाभिकमल. हृदयकमल आदि। कमल की अनेक पंखुड़ियों में एक-एक वृत्ति की स्थापना। एक जैन आचार्य ने कल्पना की नाभि कमल की। उसमें बारह पंखुड़ियां हैं। वहां बारह प्रकार की वृत्तियां जागती हैं। जब तक हमारी चेतना नाभि के आसपास रहेगी तब तक साधुता की कल्पना नहीं की जा सकती। इस स्थिति में काम, क्रोध, ईर्ष्या, मत्सर आदि वृत्तियां ही जागेंगी। जब ये वृत्तिया जागेंगी, साधुता की बात समझ में नहीं आएगी। ___ आचार्य ने कहा- 'मैं कहा हूं, इस पर ध्यान देना बहुत महत्त्वपूर्ण है। जब तक क्वाहं पर ध्यान नहीं जाएगा, तब तक अपनी स्थिति का यथार्थ बोध नहीं होगा।' यदि स्वार्थ की चेतना जागृत है तो मानना चाहिए-चेतना नाभि के आसपास काम कर रही है। जो स्वार्थी है, केवल अपनी बात सोचता है, अपना हित देखता है, अपनी रोटी सेकता है, वह दूसरे के हित की बात नहीं सोच सकता। वह तिन्नाणं तारयाणं' नहीं हो सकता। वह आत्मानुकंपी और परानुकंपी-दोनों का जोड़ा नहीं हो सकता। वस्तुत वह अनुकम्पी ही नहीं, केवल स्वार्थी होता है। ऐसे व्यक्ति की चेतना नाभि के इर्द-गिर्द केन्द्रित होती है। साधुता की कसौटी प्रश्न है-साधुता कब आती है? जब चेतना तैजस केन्द्र से ऊपर उठकर आनन्द केन्द्र पर आ जाती है, थाइमस ग्लैण्ड के प्रभाव में आ जाती है तब मानना चाहिए-चैतन्य में साधुता आ गई। भगवान् महावीर ने साधुता की अनेक कसौटियां बतलाई हैं। कसौटी पर कसे बिना यथार्थ का पता नहीं चलता। व्यक्ति सोना खरीदता है तो पहले कसौटी करता है-सोना है या नहीं? कितनी खाद है और कितना सोना? कहीं पीतल तो नहीं है? साधु की कसौटी भी जरूरी है। आचार्य भिक्षु ने इस बात पर बहुत बल दिया-पहले परखो, कसौटी करो, उसके बाद मानो। जन्मना मत मानो। किसी कुल में पैदा होना कोई मानदण्ड नहीं है। प्रत्येक बात को परखो, आंख मूंद कर स्वीकार मत करो। उत्तराध्ययन सत्र के पन्द्रहवें अध्ययन में साध की कसौटियों का प्रतिपादन है। साधु कौन होता है, इसकी संक्षिप्त परिभाषा दशवैकालिक में भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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