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________________ समस्या का मूल : परिग्रह २०१ पात्र को रंगने का प्रसंग था। मुनि वेणीरामजी ने आचार्य भिक्षु से कहा-'इसे हिंगलू से रंगना अच्छा नहीं है, इसे केल्हू से रंग लें, मूर्छा नहीं आएगी।' आचार्य भिक्षु ने कहा- 'एक खपरेल कुछ खराब है और एक खपरेल कुछ अच्छा है। तुम कौन सा लोगे?' मुनि वेणीरामजी बोले-'जो अच्छा है, वही लूंगा। आचार्य भिक्षु ने कहा-'तब तो खपरेल भी मूर्छा का कारण बन गया।' राजा को प्रतिबोध । प्रश्न वस्तु का नहीं है, प्रश्न है मूर्छा का। राजा इषुकार को सूचना दी गई-राजपुरोहित भृगु अपनी पत्नी एवं पुत्रों के साथ अकूत धन-वैभव को छोड़कर प्रव्रजित हो गए। उनकी सम्पत्ति का वारिस कोई नहीं है। जिस सम्पत्ति का कोई मालिक नहीं होता, उस पर राज्य का अधिकार होता है। राजा ने उस सम्पति को राज्य के कोषागार में लाने का आदेश दे दिया। महारानी कमलावती ने इस राजाज्ञा को सुना। उसने राजा को प्रतिबोध देते हुए कहा-'राजन्! वमन खाने वाले पुरुष की प्रशंसा नहीं होती। तुम ब्राह्मण के द्वारा परित्यक्त धन को लेना चाहते हो, यह क्या है? यदि समूचा जगत् मिल जाए या सारा धन तुम्हारा हो जाए तो वह भी तुम्हारी इच्छापूर्ति के लिए पर्याप्त नहीं होगा। वह तुम्हें कभी त्राण नहीं दे सकेगा। राजन्! एक दिन इस धन और कामनाओं को छोड़कर मरना होगा। एक धर्म ही त्राण है, दूसरा कोई त्राण नहीं हो सकता' वंतासी पुरिसो रायं! न सो होई पसंसिओ। माहणेण परिच्चत्तं, धणं आदाउमिच्छसि।। सव्वं जगं जइ तुहं, सव्वं वा वि धणं भवे। सव्वं पि ते अपज्जत्तं, नेव ताणाय तं तव।। मरिहिसि राय! जया तया वा, मणोरमे कामगुणे पहाय। एक्को हु धम्मो नरदेव! ताणं, न विज्जई अन्नमिहेह किंचि।। महारानी का उपदेश सुन राजा प्रतिबुद्ध हो गया। राजा इषुकार और रानी कमलावती–दोनों संयम के पथ पर प्रस्थित हो गए। भृगुपुत्रों का वैराग्य माता-पिता एवं राजा-रानी के रूपान्तरण का हेतु बन गया। उनके वैराग्य और संकल्प ने मूर्छा की मनोवृत्ति को पराजित कर दिया। अपरिग्रह और अमूर्छा की चेतना के आलोक से वे ज्योतिर्मय बन गए, समस्या का अंधकार विलीन हो गया। वह आलोक आज भी दुनिया को प्रकाशित करने वाला, मूर्छा से विरत होने की प्रेरणा देने वाला है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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