SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 218
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर का पुनर्जन्म घोंसला बनाती है । पशु घूरी बनाते हैं। चिड़िया पेड़ पर बैठेगी और एक प्रकार की आवाज करेगी, उसका अर्थ है-इस टहनी पर मेरा अधिकार हो गया है । अब कोई इस पर बैठने का प्रयास न करे। कुछ पशु ऐसे हैं, जिनमें गंध की ग्रन्थि होती है। शेर के मूत्र में गंध होती है । सब पशु समझ जाते हैं-वहां शेर रहता है, उस ओर नहीं जाना है। शेर अपना अधिकार जताता है गंध के द्वारा । छोटे से प्राणी में अपना घर बनाने की वृत्ति है, अपना अधिकार जताने की मनोवृत्ति है । बहुत कठिन बात है अगार को त्यागना । प्राणी की मूल मनोवृत्ति है घर पर अधिकार करना। जिसने यह अधिकार छोड़ दिया, वह अनगार हो गया, उसने एक नई यात्रा शुरू कर दी । I परिग्रह : तीन प्रकार २०० जैन तीर्थकरों ने दो मूल दोष बतलाए - आरंभ और परिग्रह। इनमें भी मूल है परिग्रह । हमारी धारणा पदार्थ पर अटकी हुई है । पदार्थ परिग्रह है पर मूल परिग्रह नहीं है । परिग्रह के तीन प्रकार हैं-कर्म, शरीर और पदार्थ । जड़ में है कर्म, जहां से मूर्च्छा और अधिकार की भावना आ रही है । दूसरा परिग्रह है शरीर। तीसरा परिग्रह है पदार्थ - धन, धान्य, मकान आदि। आदमी घर छोड़कर भी शरीर की आसक्ति को नहीं छोड़ता तो वह परिग्रह को नहीं छोड़ता । जो शरीर की आसक्ति को छोड़ देता है, वह होता है पूरा अनगार । जब शरीर की आसक्ति छूटेगी तब दूसरे परिग्रह छूटेंगे इसीलिए जैन आचार्यों ने भेद--विज्ञान पर बल दिया। हम भेद-विज्ञान का अभ्यास करें, परिग्रह की वृत्ति पर प्रहार होगा । यह भेद विज्ञान अनेक बीमारियों की चिकित्सा भी है, पर इसके लिए प्रयोग करना आवश्यक है, अंतर के रसायनों को बदलने की प्रक्रिया का अभ्यास करना अपेक्षित है। विज्ञान कहता है-एक लाख से ज्यादा प्रकार के प्रोटीन हमारे शरीर के भीतर बनते हैं। रसायनों से भरा पड़ा है हमारा शरीर । इतना बड़ा कारखाना शरीर के भीतर है, उसको चलाने वाला चाहिए, उसका स्विच बोर्ड मिलना चाहिए। न जाने कितना भीतर पड़ा है। हम यह अध्ययन करें कि कैसे इन अध्यात्म के रहस्यों को समझने का प्रयत्न करें? जब यह प्रयत्न क्रियान्वित होगा, सारी धारणाएं बदल जाएंगी। हिंसा मूल नहीं है परिग्रह की बात छूटती है, अध्यात्म की चेतना अपने आप जाग जाती है। जब तक आदमी परिग्रह के अधिकार को पकड़े रखेगा, तब तक लोभ प्रासंगिक बना रहेगा, हिंसा कभी समाप्त नहीं होगी । हिंसा मूल नहीं है, मूल है परिग्रह । आचारांग सूत्र में भगवान महावीर ने हिंसा के जितने कारण बतलाए हैं, उनमें मुख्य कारण है-लोभ, परिग्रह की मनोवृत्ति । म्यूनिख (पश्चिमी जर्मनी) के चिड़ियाघर के डायरेक्टर ने बताया- 'जब बंदर को जंगल से लाते हैं तब वह यहां रहना पसन्द नहीं करता किन्तु जब वह पिंजड़े पर अपना अधिकार जमा लेता है तब वह अन्दर किसी को घुसने नहीं देता।' यह अधिकार और परिग्रह की भावना से प्रभावित प्रवृत्ति है । यह छूटती है तो सब कुछ छूट जाता है अन्यथा कोई भी पदार्थ राग या Jain Education International मूर्च्छा का कारण बन जाता 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy