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अनुशासन के सूत्र
'मैंने चोर को देखा, यह बिल्कुल सही बात है। मैं उसे पकड़ने भी गया था। चोर घर में घुस गया। घर के बाहर लिखा था - अन्दर आना मना है। मैं कैसे भीतर जाता और कैसे चोर को पकड़ता ?”
दंड के क्षेत्र में छलना चल सकती है, बहाना चल सकता है। दुनिया में शायद बहाने से बड़ा कोई झूठ नहीं होता । झूठ को पालने का सबसे अच्छा साधन है बहाना। यह झूठ को संरक्षण देने का सबसे बढ़िया कवच है । एक बहाने के साथ झूठ को पनाह दी जा सकती है, संरक्षण दिया जा सकता है, उसे पाला जा सकता है, पर अनुशासन में ऐसा नहीं हो सकता । अनुशासन के क्षेत्र में जो सहता है, वह महान् बन जाता है ।
अनुशासन का स्रोत
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शिष्य ने पूछा- गुरुदेव ! अनुशासन का स्रोत क्या है? अनुशासन का स्वरूप क्या है और उसका फल क्या है?
आचार्य ने कहा – दूसरों की स्वतंत्रता का संरक्षण करने वाली स्वतन्त्रता अनुशासन का स्रोत है। अनुशासन का स्वरूप है-इच्छा का निरोध । उसका फल है प्रसाद और समता । अनुशासन में रहने वाला व्यक्ति सुस्थिर बन जाता है । किं स्रोतः किं स्वरूपं च किं फलं चानुशासनम् । स्वतंत्रता भवेत् स्रोतः, परस्वातंत्र्यरक्षिका ।। इच्छारोधः स्वरूपं स्यात्, प्रसादः समता फलम् । सुस्थिरो जायते लोको, विद्यमाने ऽनुशासने ।।
दूसरों की स्वतंत्रता का संरक्षण करने वाली स्वतन्त्रता अनुशासन का मूल स्रोत है। मनमाने ढंग से काम करने वाला अनुशासन को कभी नहीं निभा सकता। प्रत्येक व्यक्ति चाहता है किन्तु व्यक्ति स्वतन्त्र तभी हो सकता है जब वह दूसरे की स्वतन्त्रता में बाधक नहीं बनें। प्रत्येक व्यक्ति सोचे- मैं रोटी खाने में स्वतन्त्र हूं किन्तु मैं किसी दूसरे की रोटी में बाधक तो नहीं बन रहा हूं? मैं इस मकान में रहने को स्वतन्त्र हूं किन्तु किसी दूसरे के रहने में बाधा तो नहीं बन रहा हूं? प्रत्येक बात में दूसरे की स्वतन्त्रता को संरक्षण देने वाली अपनी स्वतन्त्रता अनुशासन का आधार बनती है । इस परापेक्षी स्वतन्त्रता से अनुशासन का स्रोत फूटता है । अनुशासन परतन्त्र बनने के लिए नहीं, किन्तु दूसरों को स्वतन्त्रता का अधिकार देने के लिए है। दूसरे व्यक्ति की स्वतन्त्रता का सम्मान ही अनुशासन का उद्गम स्थल है । परतन्त्रता में से कभी अनुशासन का स्रोत नहीं फूटता । परतन्त्रता में प्रतिक्रिया जन्म लेगी, प्रतिशोध, हिंसा, आतंक और भय जन्म लेगा। स्वतंत्रता का अर्थ है - प्रत्येक व्यक्ति की स्वतन्त्रता को मान्यता देना और यही अनुशासन का स्रोत है ।
अनुशासन का स्वरूप
अनुशासन का स्वरूप है-इच्छा का निरोध करना । व्यक्ति के मन में अनेक इच्छाएं पैदा होती हैं। किसी की कार देखकर इच्छा हो जाती है— कार बहुत बढ़िया है, यह कार मैं ले लूं। किसी की बढ़िया कोठी देखी, इच्छा हो जाती है उस मकान में रहने की। किसी का बढ़िया कपड़ा देखा, उसे पहनने की
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