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मुक्ति की प्रेरणा
जिस दुनिया में हम जी रहे हैं, वह नाना रूप वाली है। उसमें नानात्व है, कहीं एकरूपता नहीं है। नाना प्रकार के मनुष्य हैं और नाना प्रकार के व्यवहार हैं। यह नानात्व देखकर सहज प्रश्न होता है-एक आदमी धनी बनना चाहता है, एक व्यक्ति राजनीति में जाना चाहता है, सत्ता हथियाना चाहता है, एक व्यक्ति मुनि बनना चाहता है, एक व्यक्ति वैज्ञानिक बनना चाहता है, ऐसा क्यों? अगर सब समान हैं तो हमारी प्रवृत्ति एक होनी चाहिए, प्रेरणा एक होनी चाहिए। यह अलगाव और भेद क्यों है?
शिष्य ने आचार्य से पूछा-'गुरुदेव! सबकी चाह समान क्यों नहीं है? व्यक्ति अलग-अलग प्रवृत्ति क्यों करता है? कोई धनार्थी है, कोई कामार्थी है, कोई भोगार्थी है। यह अर्थित्व का जो भेद है, उसे कौन संप्रवर्तित कर रहा है?'
कामार्थी वर्तते कश्चित्, मोक्षार्थी कोऽपि वर्तते।
अर्थित्वस्य विभेदोऽयं, केनास्ति संप्रवर्तितः।। बहुत महत्त्वपूर्ण प्रश्न है-अर्थित्व-भेद का कारण क्या है? वैज्ञानिक ऐसी क्रियान्विति के स्तर पर आ रहे हैं, जिससे मनुष्य की प्रवृत्ति को नियन्त्रित किया जा सके। वैज्ञानिक प्रयोगशाला में बैठा रहेगा और वहां से सभी मनुष्यों के व्यवहार का कंट्रोल करेगा, उनकी प्रवृत्ति का नियमन करेगा।
आचार्य ने कहा- 'वत्स! तुम्हारा प्रश्न उचित है। एक व्यवहार होता है और एक प्रेरणा होती है। प्रेरणा अर्थित्व को पैदा करती है और अभिप्रेरणाएं अलग-अलग होती हैं।' मनोविज्ञान का संदर्भ
मनोविज्ञान ने व्यवहार और अभिप्रेरणा-दोनों की व्याख्या की है। अभिप्रेरणा (Motive) जैसी होती है, आदमी वैसा ही व्यवहार करता है। अभिप्रेरणा और व्यवहार-दोनों में अंतःसंबंध है। प्रेरणाओं का अलग-अलग कार्य है। वे कई प्रकार की होती हैं। एक अभिप्रेरणा है, जो अवस्था को प्रेरित करती है। एक अभिप्रेरणा व्यवहार को अभिप्रेरित करती है। जो अभिप्रेरणा व्यवहार का हेतु है, वह मनुष्य को शांत एवं संतुष्ट करती है।
मनोविज्ञान ने अभिप्रेरणा की व्याख्या तो की पर व्यक्ति के मन में अभिप्रेरणा क्यों जागती है, इसका कोई समाधान नहीं दिया। किसी व्यक्ति के मन में मोक्ष की प्रेरणा क्यों जागती है? त्याग और परमार्थ की प्रेरणा क्यों जागती है? मनोविज्ञान के पास इस प्रश्न का कोई समाधान नहीं है।
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