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महावीर का पुनर्जन्म
प्रवृत्ति से निवृत्त हो कायोत्सर्ग करते हैं। यह एक परम्परा बन गई-प्रत्येक प्रवृत्ति के साथ कायोत्सर्ग करें। यह शारीरिक और मानसिक-दोनों दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। मुनि ने ध्यान पूरा कर पात्रों को खोला। दोनों भाइयों ने सोचा-अब ये मुनि छुरी और कैंची निकाल रहे हैं। वे यह देखकर अवाक् रह गए-पात्र में छुरी-कैंची नहीं, रोटी और शाक था, पानी और दूध था। मुनिजनों ने आहार किया, पानी से पात्र धोए और पात्रों को साफ कर पुनः झोलों में रख दिया । मुनि आहार-पानी से निवृत्त हो वहीं सुस्ताने लगे।
- बच्चों ने देखा-ये मुनि तो यहीं बैठे हैं। हम कब तक वृक्ष पर बैठे रहेंगे। आखिर नीचे उतरना ही होगा। डरने से क्या होगा? जब तक डर न आये तब तक ही डरना चाहिए। डर के सामने आने पर तो उसका मुकाबला ही करना चाहिए।
दोनों भाई पेड़ से नीचे उतरे। मुनियों ने बालकों को देखा और बालकों ने मुनियों को। मुनिजी ने पूछा-'भाई! कौन हो तुम?'
बच्चों ने जवाब दिया-'हम इसी गाव के रहने वाले हैं, राजपुरोहित भृगु के पुत्र है। तुम कौन हो?'
'भई! हम साधु हैं।' 'क्या तुम बच्चों को पकड़ते हो? उन्हें भगाकर ले जाते हो!' 'तुम कैसी बहकी-बहकी बातें कर रहे हो। किसने बताया है यह सब
तुम्हें ।'
'हमारे पिताजी ने।' 'इतनी झूठी बात कैसे बताई?' 'क्या यह सच नहीं है?'
'इसमें बिलकुल सचाई नहीं है। हम तो एक चींटी को भी नहीं सताते। फिर आदमी को सताने की बात ही कहां? तुमने स्वयं देखा होगा? जब हम वृक्ष के नीचे ठहरे तो भूमि का प्रमार्जन कर ठहरे। उस पर कंबल बिछा कर बैठे। किसी जीव को संत्रास न पहुंचे, यह हमारा व्रत है।' मुनि ने विस्तार से अहिंसक चर्या की जानकारी दी।
पूरी जानकारी पाते ही पर्दा हट गया। उन्होंने सोचा-यह क्या? क्या पिता भी इतनी गलत बातें बता सकता है? पिताजी ने ऐसा क्यों बताया? वे इस प्रश्न की गहराई में गए, आवरण हट गया। यथार्थ सामने आ गया। उनके मन में प्रश्न उभरा-अहो! ऐसे साधु हमने कहीं देखे हैं? इस प्रश्न पर चिन्तन गहरा हुआ। उन्हें जातिस्मृति ज्ञान उपलब्ध हो गया। उन्होंने अपने पूर्वजन्मों को साक्षात् देख लिया। उन्होंने देखा-हम दो ही नहीं, छह मित्र थे। इससे पहले हम छहों मित्रों ने किसी सभ्य कुल में जन्म लिया। उस जन्म में हम सबने विविध भोगों को भोगा और उसके बाद मुनि बन गये। उस भव में मरकर हम देवलोक में उत्पन्न हुए और वहां से च्युत होकर राजपुरोहित भृगु के पुत्र के रूप में जन्म लिया है। हमारे पिता और माता हमारे पूर्व भव के दो मित्र हैं और दो मित्र
इषुकार नगर के राजा इषुकार और रानी कमलावती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only
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