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________________ १८४ महावीर का पुनर्जन्म मुनि ने राजपुरोहित को धर्म का स्वरूप और मर्म समझाया। राजपुरोहित प्रबुद्ध बन गया। उसे सम्यग् दर्शन हो गया। उसने श्रावक के व्रत स्वीकार कर लिए। जब दिव्य शक्ति का अवतरण होता है तब एक साथ विस्फोट हो जाता संतान की अभिलाषा : मुनि का कथन बातचीत के मध्य राजपुरोहित ने मुनि से पूछा-'आप ज्ञानी हैं। आप बताइए-हमारे कोई संतान होगी? अनेक वर्षां से हम संतान की कामना लिए हुए हैं। हमारी कामना कब पूरी होगी?' यह संतान का प्रश्न आज के युग में भी बहुत उभरता है। आज परिवार नियोजन की बात भी प्रखर बन रही है पर उस समय संतान का प्रश्न बहुत जटिल था। चीन में यह नियम बन गया-संतान एक से ज्यादा न हो। हिन्दुस्तान में कहा जाता है-दो या तीन से अधिक संतान न हो। रूस में कुछ वर्ष पहले तक यह विधान था—जितनी अधिक संतान उतना अधिक पुरस्कार। कहीं परिवार-नियोजन का स्वर रहा है तो कहीं संतति की वृद्धि का स्वर। पर संतान की कामना हमेशा रही है। ___ मुनि ने कहा-'भाई! हमारा यह विषय तो नहीं है पर तुमने पूछ लिया है इसलिए बता देते हैं-तुम्हारे एक नहीं, दो पुत्र होंगे पर...' पर शब्द सुनते ही राजपुरोहित का मन आशंका से भर गया। उसने पूछा---'महाराज! पर का अर्थ!' 'वे तुम्हारे ज्यादा काम के नहीं होंगे।' 'क्या मैं जल्दी चला जाऊंगा इस दुनिया से।' 'न तुम जाओगे, न वे कहीं जाएंगे किन्तु थोड़े से बड़े होते ही वे मुनि बन जाएंगे।' पुत्र होंगे, यह सुनकर हर्ष हुआ और वे मुनि बन जाएंगे, यह सुनकर विषाद भी हुआ। वे मुनि बन जाएंगे तो मेरे किस काम आएंगे? दुनिया को न पुत्र से मतलब है, न पिता से। उसका मतलब अपने स्वार्थ से है। झुठलाने का अहं मुनि यह कहकर विदा हो गये। राजपुरोहित ने सोचा-मुनि जब बनेंगे तब बनेंगे। मैं उन्हें बनने ही नहीं दूंगा। वे मुनि तब बनेंगे जब साधुओं के सम्पर्क में आएंगे। मैं उन्हें साधुओं के सम्पर्क में आने ही नहीं दूंगा। उनकी छाया से ही दूर रखूगा। न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी। उसने सोचा-शहर में तो साधु-संन्यासी आते ही रहते हैं, गांवों में कौन आयेगा? मैं इस शहर को छोड़कर किसी गांव में जाकर रहूंगा। बच्चों का मुनियों से सम्पर्क होगा ही नहीं। शहर में साधुओं की जमात आती ही रहती है, लड़के उन्हें देखेंगे तो मुनि बनने की बात जाग जाएगी। राजपुरोहित ने यह निश्चय कर नगर का मोह छोड़ दिया। वह एक गांव में रहने लगा। वह राज्य का मान्य पुरोहित था इसलिए गांव में भी सारी सुविधाएं उपलब्ध थीं। वह निश्चितता से जीवन जीने लगा। उसके मन में यह अहं भर आया-मुनिजी की बात सच कैसे होगी? मैं उनके कथन को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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