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जब सत्य को झुठलाया जाता है।
कुछ बन जाता है । हम उस बदलाव को पकड़ें। जब औदयिक भावों का परिवर्तन होता है तब आदमी असत्य में चला जाता है । जब बदलाव नहीं, ठहराव आता है, तब आदमी उत्पाद - व्यय से मुक्त होकर ध्रौव्य की अवस्था में चला जाता है । जब औदयिक भाव से मुक्त होकर पारिणामिक भाव में आता है तब जो स्थिति बनती है, उसमें सत्य बलवान होता है ।
देवता की चिन्ता
आचार्य ने अपनी बात को स्पष्ट करते हुए एक उदाहरण प्रस्तुत किया। दो देवताओं के देवलोक से च्युत होकर धरती पर आने का समय निकट आ गया। उनकी मालाएं कुम्हलाने लग गई, चेहरे पर झुर्रियां पड़ गई। देवताओं ने देखा - यह क्या हो रहा है? माला क्यों कुम्हला रही है? चेहरे पर झुरियां क्यां आ रही हैं? वे गहराई में उतरे, रहस्य समझ में आ गया- माला कुम्हलाना और बुढ़ापा उतरना मौत का पूर्व संकेत है। देवताओं की माला सदा पुष्पित रहती है, उनका चेहरा सदा तरोताजा रहता है। जब देवलोक से च्युत होने का समय निकट आता है तब माला कुम्हलाने लगती है, चेहरे पर झुर्रियां पड़ने लग जाती है । देवता चिन्तित हो उठे। उन्होंने देखा -कहां जाना है? पता चल गया - मनुष्य लोक में जाना है। जब मनुष्य होने की बात आती है, देवता घबरा जाते है । अन्य गति में जाने से तो उससे भी अधिक घबराते हैं । दिव्य भूमि से मनुष्य लोक में जाना किसे पसन्द होगा? ऐसी दिव्य भूमि है, जहां चारों ओर मनोहर वातावरण है, न प्रदूषण है, न गन्दी हवा है, न कोलाहल है, न रसोई बनाने का झंझट है, न चूल्हा फूंकना है, न खाने-पीने की चिन्ता है, न आजीविका की चिन्ता है । जो मनुष्य बनता है, उसे सबसे पहले गर्भावास में रहना होता है । एक बंद थैली में नौ महीने तक रहना कितना दुःखद है। देवताओं का मन विषाद से भर गया। शांत, सुरम्य और पवित्र भूमि से ऐसी भूमि में आना कौन चाहेगा? कोई चाहे न चाहे, अपने कर्म के अनुसार उसे निर्धारित योनि में जाना ही होता है । प्रकृति के नियम को कैसे टाला जा सकता है?
देवताओं ने उस स्थान को देख लिया, जहां जाना था। दोनों देवता परस्पर परामर्श कर मनुष्य लोक में आए। साधु का वेश बनाया। ईषुकार नगर - राजपुरोहित के घर भिक्षा के लिए पहुंचे। राजपुरोहित का नाम था भृगु । उसकी पत्नी का नाम था यशा । मुनि को देखते ही दोनों के हाथ जुड़ गए। यह सहज है - जब मनुष्य त्यागी व्यक्ति को देखता है, उसका सिर नीचे झुक जाता है, हाथ जुड़ जाते हैं।
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राजपुरोहित ने पूछा - 'महाराज ! कैसे पधारे?" 'ऐसे ही, भिक्षा के लिए आ गये ।'
मुनि ने राजपुरोहित से कुछ बातचीत की। राजपुरोहित के मन में आकर्षण पैदा हो गया। मुनि की भव्य मुद्रा और तेजस्वी मुखमण्डल पुरोहित के हृदय में समा गया। राजपुरोहित ने कहा - 'महाराज ! कहिए क्या आदेश है?" 'हमारा आदेश यही है कि तुम धार्मिक बनो। धर्म का जीवन जीओ।'
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