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महावीर का पुनर्जन्म
रागाद् वा द्वेषाद् वा मोहाद् वा यद् वाक्यमुच्यते ह्यनृतम् ।
यस्य तु नैते दोषाः तस्यानृतकारणं किं स्यात् ।।
जिसमें मोह नहीं है, राग और द्वेष नहीं है, वह सत्य ही बोलेगा। वह अयथार्थ को ग्रहण नहीं करता, यथार्थ को ही ग्रहण करता है इसलिए यथार्थ ही कहेगा। उसमें केवल ज्ञान का उपयोग होता है।
जीव का लक्षण है उपयोग आत्मा। क्रोधोपयोग और मानोपयोग जीवन का लक्षण नहीं है। जीव का लक्षण है केवल उपयोग, शुद्ध उपयोग। जब जीव अपने लक्षण से लांछित या चिह्नित होता है, उस क्षण में सब सत्य ही सत्य होता है, किन्तु जब उपयोग के पीछे कोई विशेषण जुड़ता है, क्रोध, मान, माया, लोभ, भय, हास्य आदि का योग होता है तब सत्य गौण हो जाता है, असत्य बलवान हो जाता है। बदलाव का चक्र
जीवन में बदलाव का एक चक्र चल रहा है। प्रत्येक व्यक्ति बदलता है। वह प्रतिदिन और प्रतिक्षण बदलता है। वह इतना बदलता है, फिर भी हम कभी कभी ही उस बदलाव को पकड़ पाते है। अवस्था में आने वाला बदलाव भी रोज नहीं पकड़ा जाता। एक शिशु दस वर्ष का होता है तब बदलाव का पता चलता है। हम सोचते हैं शिशु किशोर हो गया, दूसरी अवस्था में चला गया। जब बीस वर्ष के आस-पास पहुंचता है तब एक और बदलाव की बात सामने आती है। जब पचास वर्ष का होता है तब वह प्रौढ़ बनता है। इन बदलावों के आधार पर जैन आचार्यों ने सौ वर्ष की आयु को दस अवस्थाओं में बांट दिया। दस-दस वर्ष की एक अवस्था। सौ वर्ष जीने वाला व्यक्ति इन अवस्थाओं को भोग लेता है। सूर्य में भी बदलाव आता है। जो सौर वैज्ञानिक हैं, वे उस बदलाव को पकड़ लेते हैं। सूर्य के भी दस वर्ष का एक चक्र होता है। उस चक्र के आधार पर बदलाव को पकड़ा जाता है। प्रतिदिन होने वाला बदलाव हमारी पकड़ में नहीं आता। प्रातःकाल सूर्योदय होते ही वातावरण में एक बदलाव आता है। ज्यों-ज्यों दिन चढ़ता है, वातावरण बदलता जाता है। दो तीन घण्टे बाद वातावरण एकदम बदल जाता है। एक-एक मिनट में बदलाव आता है पर हम उसे पकड़ नहीं पाते। यह सूक्ष्म होता है।
__हम व्यक्ति की मनःस्थिति को देखें। वह कब एकरूप रहती है? यदि हम एक दिन कागज पेंसिल लेकर बैठे और दिन भर बदलते मूड को अंकित करते चलें तो पूरा पृष्ठ मूड परिवर्तन की घटनाओं से भर जाएगा। संभव है एक पूरी कॉपी भर जाए। हमारा मूड अपने आप भी बदलता है और बाहरी निमित्तों के कारण भी बदलता है। हमारी भावधारा बदलती रहती है, हमारे हाव-भाव और मुद्राएं बदलती रहती हैं। केवल अन्तर्मन नहीं बदलता। एक आदमी किसी आकृति को एक दिन तक पढ़ता रहे तो उसे लगेगा आकृति में कितने बदलाव आए हैं—कभी प्रसन्न आकृति और कभी विषण्ण। कभी खुश तो कभी नाराज। कभी हंसमुख और कभी चिंतातुर। कभी सिर पर हाथ धरे बैठा है और कभी
उल्लास के क्षण में। आदमी क्षण-क्षण में बदलता है। आदमी कुछ होता है और Jain Education International For Private & Personal Use Only
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