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ર૭.
जब सत्य को झुठलाया जाता है
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जब-जब जिज्ञासा प्रबल होती है तब-तब किसी का द्वार खटखटाना होता है। जिसने दरवाजा खटखटाया है, उसने समाधान पाया है। जो बैठा रहता है, वह समाहित नहीं हो पाता। शिष्य जिज्ञासा को लेकर आचार्य की सन्निधि में
आचार्य ने पूछा-'वत्स! कैसे आए हो?'
"भंते! मन में एक जिज्ञासा है। उसका समाधान पाने आया हूं।' 'क्या जिज्ञासा है तुम्हारी?'
'भंते! सत्य बलवान होता है या भाव-विप्लव। भाव का परिवर्तन होता रहता है। कभी एक भाव आता है और कभी दूसरा भाव आ जाता है, यह भाव का विप्लव बलवान है या सत्य?'
'वत्स! जब ज्ञान का उपयोग होता है तब सत्य बलवान होता है। जब क्रोध, लोभ, मोह आदि का उपयोग होता है तब भाव-विप्लव बलवान होता है।'
. सत्यं बलयुतं यद् वा, बलवान् भावविप्लवः ।
ज्ञानोपयोगे सत्यं स्याद. अन्यो मोहचिदःक्षणे।। आचार्य ने सत्य की थोड़े शब्दों में बहुत सुन्दर परिभाषा दी है। सत्य है ज्ञान का उपयोग। असत्य है भाव का विप्लव। यह सत्य और असत्य को परखने की बहुत बड़ी कसौटी है। जब-जब ज्ञान का केवल उपयोग होता है, उसके साथ कोई मिश्रण नहीं होता तब-तब सत्य बलवान होता है। जब वह क्रोध, मान, माया और लोभ से युक्त होता है तब-तब असत्य बलवान हो जाता है। भगवती सूत्र में कहा गया है-जब व्यक्ति क्रोध, मान, माया और लोभ से उपयुक्त होता है, जिस क्षण में इन औदयिक भावों का आवेश हमारी चेतना में प्रबल बनता है, उस समय असत्य बलवान बन जाता है।
असत्य की उत्पत्ति के चार कारण बतलाए गए हैं.-क्रोध, लोभ, भय और हास्य। आदमी झूठ बोलना नहीं चाहता, मिथ्या आचरण करना नहीं चाहता, सिद्धांत और वाणी का असत्य भी नहीं चाहता किंतु जब ये चार आवेश प्रबल होते हैं, तब सचाई नीचे चली जाती है, असत्य उभर कर सामने आ जाता है। असत्य बोलने के कारण
दर्शनशास्त्र में आप्त पुरुष की बहुत चर्चा हुई है। कहा गया-जो आगम हैं, वे प्रमाण हैं। प्रश्न आया-आगम प्रमाण है, इसका क्या प्रमाण है? कहा गया-आगम आप्त की वाणी है और आप्त कभी झूठ नहीं बोलता। झूठ बोलने के तीन कारण हैं-राग, द्वेष और मोह। व्यक्ति इन तीन कारणों से झूठ बोलता है। जिसमें ये तीनों दोष नहीं होते, वह झूठ क्यों बोलेगा?
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