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महावीर का पुनर्जन्म
करना। इसका तात्पर्य है-करुणा और संवेदनशीलता जग जाए। जिसमें अनुकंपा का भाव है, वह मिलावट नहीं कर सकता, अप्रामाणिकता और भ्रष्टाचार नहीं कर सकता। जिसमें अनुकंपा है, वह दूसरे को धोखा नहीं दे सकेगा, लूट नहीं सकेगा। जीवन की महत्त्वपूर्ण घटना है-अनुकंपा के भाव का जागना। यदि प्राणीमात्र के प्रति अनुकंपा का भाव जाग जाए तो हिंसा और अपराध की समस्या स्वतः कम हो जाए। जिस व्यक्ति की संवेदनशीलता प्रबल है, दूसरों के कष्ट से उसका हृदय द्रवित हो जाएगा।
आर्य-कर्म करने का सन्देश सुनकर भी राजा प्रतिबुद्ध नहीं हुआ। मुनि ने यह जानकर वहां से विहार कर दिया। दो भाई मिल कर पुनः बिछुड़ गए। एक त्याग के पथ पर बढ़ गया और एक भोगों में पुनः लिप्त हो गया। यदि हम आर्य-कर्म के मर्म की बात को समझ पाएं तो यह प्रसंग एक नई दृष्टि और नया दर्शन देने वाला सिद्ध हो सकता है।
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