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________________ दो भाइयों का मिलन १७३ प्रदर्शन था मधुकरी गीत नामक नाट्य-विधि का। बहुत विचित्र होता है यह नाटक। रायपसेणीय सूत्र में नाटक की अनेक विधियों का वर्णन है, नाटक के अनेक प्रकारों का विवेचन है। उनमें प्रमुख नाट्य विधि है मधुकरी गीत। जैसे फूलों पर भंवरा आता है, गुंजारव करता है, कभी किसी फूल पर बैठता है और कभी किसी फूल पर, कभी किसी फूल का रस लेता है और कभी किसी का। एक फूल का रस लिया, आकाश में उड़ गया। दूसरे फूल का रस लिया, आकाश में उड़ गया। वैसे ही मधुकरी गीत नाट्य में फूलमालाएं बिछा दी जाती हैं। नट कभी किसी फूलमाला का स्पर्श करता है और कभी किसी अन्य फूलमाला का। एक फूल का स्पर्श करता है और भंवरे की तरह उड़ जाता है। पुनः आता है, दूसरे फूल का स्पर्श करता है और फिर उड़ जाता है। एक ओर गायन चलता है, वाद्ययंत्रों से विभिन्न प्रकार की नाट्य ध्वनियां निकलती हैं, दूसरी ओर व्यक्ति फूलों के स्पर्श का करतब दिखाता चला जाता है। मधुकरी गीत नाट्य प्रारम्भ हुआ। एक युवती ने राजा के सामने फूलमालाएं बिछा दीं। नट आता है विभिन्न अदाओं के साथ। फूलमाला का स्पर्श करता है और गायब हो जाता है। मधुर गीत और वाद्ययंत्र की मधुर धुन से वातावरण मधर बनता जा रहा था। चक्रवती ब्रह्मदत्त मधुकरी गीत में बता चला गया। वह बहुत गहरे में उतर गया। उसके मन में विकल्प उठा-ऐसा नाटक कहीं देखा है? यह जातिस्मृति ज्ञान का पहला चरण है-ऐसा मैंने कहीं देखा है? ऐसा मैंने कहां देखा है? चक्रवर्ती इस प्रश्न की गहराई में डूबने लगा। वह चेतन मन की सीमा से अवचेतन मन की सीमा में चला गया। चेतन मन का दरवाजा बंद हो गया। जब व्यक्ति अवचेतन मन के स्तर पर पहुंचता है, जातिस्मृति की भूमिका बन जाती है। अवचेतन की सीमा में पहुंचते ही चक्रवर्ती सिंहासन पर बैठा-बैठा ही मूर्छित हो गया। वह मूर्च्छित होकर नीचे गिर पड़ा। उसे अपने शरीर का कोई ध्यान नहीं रहा। राजा को इस अवस्था में देख चारों ओर सन्नाटा छा गया। सारे सभासद और विशिष्ट व्यक्ति राजा के पास पहुंचे। चिकित्सक को बुलाने के लिए राज्यकर्मचारी दौड़ पड़े। मंत्री राजा पर पंखा झलने लगा। चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त भीतर की गहराइयों में डूब रहा था। लोग इस तथ्य को कैसे जान पाते? वे यही सोच रहे थे-राजा मूर्च्छित हो गया है, बीमार हो गया है। वस्तुतः यह कोई बीमारी नहीं थी। यह अचेतन जगत में प्रवेश था। वह भीतर में इतना चला गया कि बाहर की कोई सुध-बुध नहीं रही। बाहरी चेतना समाप्त हो गई। उपचार चला, शीतल हवा के स्पर्श से राजा पुनः सचेत हो गया। चेतन जगत में आते ही वह पनः चिन्तन में खो गया। उसके मन में चिन्तन उभरा-मैंने इसे कहीं देखा है? कहां देखा है इसे? इस प्रश्न की गहराई में जाते-जाते चेतना का द्वार खुल गया, वह प्रकाश से भर उठा। अतीत का एक-एक पृष्ठ स्मृति-पटल पर उतरने लगा, उसे याद आया-मैंने ऐसा नाटक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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