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महावीर का पुनर्जन्म
चक्रवर्ती ने कहा-'मैं अपने ही पूर्वकृत कर्म के कारण, स्वयं द्वारा किए गए निदान के कारण आसक्ति में डूबा हुआ हूं। धर्म को जानता हुआ भी मैं उसमें प्रवृत्त नहीं हो पा रहा हूं।' प्रश्न कहीं : उत्तर कहीं।
महाभारत और उत्तराध्ययन के इस प्रकरण में कितना साम्य है! हम केवल प्रश्न को ही न छुएं, समाधान को भी छुएं। यह दुनिया बड़ी विचित्र है। प्रश्न कहीं पैदा हुआ और उत्तर कहीं दिया गया। प्रश्न पूछा जा सकता है बम्बई में और उत्तर मिल सकता है जैन विश्व भारती में। सीमेंट कहीं बनती है, ईंटें कहीं बनती हैं, चूना कहीं बनता है, इन सबसे मकान और कहीं बन जाता है। एक ग्रन्थकार ने एक समस्या प्रस्तुत कर दी, एक विचार प्रस्तुत कर दिया, व्यक्ति के मस्तिष्क को झकझोर दिया। यह कोई जरूरी नहीं है कि जो प्रश्न खड़ा करे, वही समाधान भी दे। दूसरा ग्रन्थकार समाधान दे देता है, प्रश्न खड़ा नहीं करता। अध्येता के लिए यह जरूरी है कि वह एक ग्रन्थ में प्रश्न खोजे और दूसरे ग्रन्थ में समाधान खोजे। महाभारत के प्रश्न को उत्तराध्ययन में बहुत सन्दर समाधान मिला और वह तब मिला जब दो भाइयों का मिलन हुआ।
मिलन में से बहुत सारी बातें निकलती हैं। मिलन और सम्मेलन व्यर्थ नहीं होता। सफलता या विकास का एक आधार है मिलन या सम्मेलन। जब मिलते ही नहीं हैं तब विकास की बात ही समाप्त हो जाती है। विकास का पहला चरण है मिलन। दो आंखें मिलती हैं, एक नया संबध पनपता है। अपनी ही दो आखें मिलती हैं, ध्यान की मुद्रा बन जाती है। निमेष, अनिमेष-ये शब्द मिलन तथा उससे जुड़ी विभिन्न मुद्राओं की सूचना देते हैं। मिलन बहुत काम का होता है। उत्तराध्ययन सूत्र में दो भाइयों के मिलन का जो प्रसंग है, वह बहुत ही रोमांचक है। दो भाई मिले हैं और बहुत ही विचित्र ढंग से मिले है। गाथा मिलन की
चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त अपनी राजसभा में बैठा था। एक नटमण्डली आई। वह नटविद्या में बहुत दक्ष थी। प्राचीन युग में बहुत नाटक खेले जाते थे। नाटककारों का अभिनय कौशल जनता को बांधे रखता था। आज भी नाटक की परम्परा चल रही है। यह सिनेमा का युग है फिर भी नाटक का मूल्य बना हुआ है। आज नाटक का पुनर्जन्म हो रहा है, उसका मूल्य बढ रहा है। नाटक में जो सजीवता आती है, वह कभी-कभी व्यक्ति के चेतन मन को अतिक्रांत कर अवचेतन मन को छू लेती है।
नटप्रमुख ने प्रार्थना की-'राजन्! हम आपको एवं आपकी प्रजा को प्रमुदित करने वाले नाटकों का प्रदर्शन करना चाहते हैं। राजा ने नट प्रमुख के प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी। विशाल मैदान में व्यवस्था की गई। रंगमंच तैयार हो गया। निश्चित समय पर नट मंडली प्रस्तुत हो गई। चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त भी नाटक देखने के लिए पधारे। हजारों-हजारों लोगो की भीड़ उमड़ पड़ी। विशाल मैदान छोटा लगने लगा।
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