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________________ १७० महावीर का पुनर्जन्म महावीर ने अनेकांत के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। वीतरागता, समता और अनेकांत-तीनों एक बिन्दु पर पहुंच जाते हैं। महावीर की साधना-पद्धति का एक प्रतिनिधि शब्द है वीतरागता। जैनधर्म में आदर्श है वीतराग। उसका दर्शन है वीतरागता की साधना का। जैन दर्शन में आस्था रखने वाले व्यक्ति का लक्ष्य है वीतराग होना। चरित्र का अंतिम रूप है वीतरागता। वीतरागता का पहला और अंतिम बिन्दु है समता। समता से बड़ा कोई आचरण नहीं है-समता परमं आचरणम्। वीतरागता और समता दो नहीं हैं। वीतराग हुए बिना समता के बिन्दु पर कभी पहुंचा नहीं जा सकता है। जहां समता है वहां एकांत आग्रह नहीं होगा, अनेकांत होगा। प्रतिस्रोत के पथ पर भगवान् महावीर के समय में आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक-तीनों प्रकार की समस्याएं थीं। अनेक दर्शनों ने इन पर विचार-मंथन प्रस्तुत किया। आधिदैविक और आधिभौतिक स्थितियों से ऊपर उठकर उनका आध्यात्मिकीकरण कर सारी समस्याओं का समाधान कर देना महावीर जैसे समर्थ व्यक्तित्व के लिए ही संभव था। महावीर सामायिक के प्रवर्तक थे, समता के प्रवक्ता थे इसलिए यह बात संभव बन सकी। जातिवाद, यज्ञवाद और तीर्थस्थान-ये तीन उस समय के जटिल प्रश्न थे। हजारों लोग इन बातों को मानकर चल रहे थे। उस स्थिति में एक नया दर्शन और नया चिंतन देना सचमुच साहस का काम था। बहती धारा के साथ चलना बहुत आसान है। प्रतिस्रोत में चलने का साहस किसी महापुरुष में ही होता है। भगवान महावीर में ऐसा साहस था। उन्होंने प्रचलित परम्परा के प्रतिकूल सिद्धान्त की प्रतिस्थापना की। उनके सामने वीतरागता का दृष्टिकोण था, अनेकांत दर्शन था इसलिए आधिदैविक और आधिभौतिक प्रश्नों का आध्यात्मिकीकरण सहज संभव बन गया। यज्ञ और तीर्थस्थान के प्रश्न का आध्यात्मिकीकरण उसका एक निदर्शन हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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