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________________ १६६ महावीर का पुनर्जन्म 'जीव ज्योति-स्थान है।' 'तुम्हारी घी डालने वाली करछियां कौन-सी हैं?' 'योग-मन, वचन और शरीर की सत् प्रवृत्ति घी डालने की करछियां 'तुम्हारे अग्नि जलाने के कंडे कौन से हैं?' 'शरीर अग्नि जलाने के कंडे हैं।' 'ईंधन कौन सा है?' 'कर्म है ईधन' 'और शांति पाठ.....?' 'संयम।' 'तुम किस होम से ज्योति को प्रीणित करते हो?' 'ऋषि प्रशस्त अहिंसक होम से।' 'तुम्हारा जलाशय कौन सा है?' 'अकलुषित एवं आत्मा का प्रशस्त लेश्या वाला धर्म मेरा जलाशय है।' 'शांतितीर्थ कौन-सा है? आप कहां नहा कर कर्मरज धोते हैं?' 'ब्रह्मचर्य है शांति, जहां नहा कर मैं विमल, विशुद्ध, सुशीतल होकर कर्मरज का त्याग करता हूं।' वर्तमान शैली पाप कर्मों का नाश कैसे करें? अधोगति से कैसे बचें? अनिष्ट से कैसे बचें? विमल, विशुद्ध और पवित्र कैसे बनें? ये प्रश्न आस्तिकता के सूचक प्रश्न रहे हैं। इन सभी प्रश्नों का जैनदृष्टि से समाधान दिया गया। हम किसी भी प्रश्न का खंडन न करें। खंडन करने से कोई प्रश्न उत्तरित नहीं होता। खंडन करना आज की शैली नहीं है। खंडन न करना महावीर की शैली रही है। इस संदर्भ में एक युग की चर्चा करना अप्रासंगिक नहीं होगा। जैन परंपरा का मध्य युग-पंद्रह सौ वर्षों का समय जैन परंपरा के अनुकूल नहीं रहा। उसमें कुछ दूसरा प्रभाव आ गया। यदि जैन दार्शनिक महावीर के पदचिन्हों पर चलते तो जैन दार्शनिक ग्रन्थों में दूसरे दर्शनों का खंडन नहीं मिलता। जो दर्शन अनेकांतवाद को स्वीकार करता है, नयवाद को शिरोमणि मानता है, वह दर्शन दूसरे दर्शनों का खंडन करे, यह बात समझ से परे है किन्तु ऐसा हुआ है, इस सचाई को नकारा नहीं जा सकता। अनेक जैन आचार्यों ने खंडन का मार्ग अपनाया किन्तु समय-समय पर अनेक आचार्यों ने महावीर का अनुगमन किया, समन्वय की नीति का प्रयोग किया। समन्वय ग्रन्थ : शास्त्रवार्ता समुच्चय आचार्य हरिभद्र सूरि ने एक ग्रन्थ लिखा-शास्त्रवार्ता समुच्चय। वह बहुत अद्भुत ग्रन्थ है। उस ग्रन्थ में सभी दर्शनों का स्पर्श है किन्तु खंडन किसी भी दर्शन का नहीं है। उसमें सभी दर्शनों का नयदृष्टि से समर्थन है। आचार्य हरिभद्र ने शास्त्रवार्ता समुच्चय में ईश्वरकर्तृत्ववाद का भी समर्थन किया है। नय दृष्टि से विचार करें तो कोई भी विचार असत्य नहीं हो सकता। जितने वचन के प्रकार For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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