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महावीर का पुनर्जन्म
वैचारिक जगत् में यह धारणा हो गई— जाति जन्मना नहीं, कर्मणा होती है किन्तु आम जनता में जो जन्मना जाति का संस्कार डाल दिया गया, वह नहीं बदल पाया। इसी का परिणाम है-आज हिन्दुस्तान जाति और वर्णवाद की समस्याओं को झेल रहा है। आज मनुष्य में घृणा भरना जितना आसान है, प्रेम और मैत्री भरना उतना आसान नहीं है। कहा जाता है— मत की बात महीन । ऊंच-नीच की एक मान्यता या मत बन जाता है । उस मत या मान्यता को तोड़ पाना बहुत कठिन होता है किंतु इन सारी मान्यताओं, धारणाओं, आग्रहों और अभिनिवेशों को तोड़ना आवश्यक है ।
महावीर का क्रांत चिंतन
महावीर ने इन आग्रहों को तोड़ने के लिए जो कार्य किया, वह एक बहुत बड़ी क्रांति थी । उन्होंने ग्रन्थों का प्रामाण्य न बतलाकर व्यक्ति का प्रामाण्य बतलाया । यदि ग्रन्थों का प्रामाण्य होता तो जातिवाद पर कभी प्रहार नहीं हो पाता। यदि हम ग्रन्थों की व्याख्या पर ही चलेंगे तो जातिवाद को भी तोड़ा नहीं जा सकेगा । व्यक्ति का अनुभव प्रमाण होता है, वृत्तियां प्रमाण होती हैं, उसका चरित्र और अतीन्द्रिय दर्शन प्रमाण होता है । इस क्रांत दृष्टिकोण ने एक नए दर्शन की स्थापना की और यह स्वर मुखर हो गया
कम्मुणा बंभणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तिओ । सुद्दो हवइ कम्मुणा ।।
वइस्सो कम्मुणा होइ,
मनुष्य कर्म से ब्राह्मण, कर्म से क्षत्रिय, कर्म से वैश्य और कर्म से शूद्र
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होता है ।
महावीर ने जातिवाद की प्रचलित मान्यता को नया संदर्भ दिया और एक वैचारिक क्रांति घटित हो गई । यदि वह वैचारिक क्रांति मानवीय जीवन में संक्रांत होती तो विश्व में जातिवाद और रंगभेद की समस्या का उद्भव ही नहीं होता । महावीर का यह स्वर जातीय समस्या के समाधान का आधार - सूत्र बन सकता है ।
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