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महावीर का पुनर्जन्म
कौन भरता है? यदि व्यापारी वर्ग नहीं होता तो सब पेट पर हाथ फेरते । व्यापार का प्रतीक है - पेट । सेवक वर्ग पैर से पैदा हुआ । गतिशीलता का प्रतीक है- पैर । इसमें ऊंचा - नीचा कुछ भी नहीं है। गुणों के आधार पर समाज को चार भागों में बांटा गया। इन्हीं चार अपेक्षाओं के आधार पर चार वर्गों की व्यवस्था की गई थी किंतु कोई भी तथ्य भविष्य में अपना मूल रूप खो देता है । उसके साथ अनेक प्रकार की कल्पनाएं, मान्यताएं और धारणाएं जुड़ जाती हैं। समाज व्यवस्था : प्लेटो की कल्पना
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प्लेटो ने आदर्श राज्य की कल्पना की। उन्होंने बताया - समाज में तीन प्रकार के लोग होते हैं-बुद्धिप्रधान, साहसप्रधान और वासनाप्रधान । बुद्धि, साहस और वासना - ये तीन अपेक्षाएं हैं। जो बुद्धिप्रधान होता है, वह संरक्षक होता है । जो साहसप्रधान है, वह सहायक संरक्षक होता है। इस श्रेणी के लोग सैनिक या पुलिसकर्मी होते हैं। जो वासनाप्रधान है, वह कृषक या व्यापारी है। कहा गया - प्रत्येक व्यक्ति में ये तीनों प्रधान गुण होते हैं किंतु तरतमता के आधार पर उसे तीन भागों में बांटा जा सकता है। एक व्यक्ति में बुद्धि प्रधान होती है, साहस और वासना गौण होती है । इतिहास साक्षी है - बहुत से शासक ऐसे हुए हैं, जिनमें साहस तो बहुत था पर बुद्धि कम थी। कुछ लोगों में वासना प्रधान होती है, बुद्धि और साहस गौण होता है ।
व्यापक दृष्टिकोण
प्रत्येक व्यक्ति में ये सारी वृत्तियां विद्यमान हैं। आदमी सुबह शौच जाता है, क्या वह शूद्र नहीं है। आदमी धन कमाता है, क्या वह वैश्य नहीं है? वह पढ़ता है, क्या ब्राह्मण नहीं है? वह अपने परिवार की रक्षा करता है, क्या वह क्षत्रिय नहीं है? क्या प्रत्येक आदमी में ये चारों वर्ण नहीं हैं? यह एक व्यापक और लचीला दृष्टिकोण है। महावीर ने इसी दृष्टिकोण का प्रतिपादन किया था - जातिवाद और वर्णवाद को लेकर हिंसा मत फैलाओ। एक दूसरे के प्रति उच्चता या निम्नता का भाव मत लाओ। जो आदमी जैसा काम करता है, वह वैसा ही होता है ।
महावीर की इस अवधारणा को इस रूप में प्रस्तुत किया जा सकता
समाज:
व्यक्तिसापेक्षः, जनाः विविधशक्तयः ।
कर्म शक्त्यनुरूपं स्याद्, तेन जातिः स्वकर्मणा ।।
समाज व्यक्ति सापेक्ष होता है । प्रत्येक समाज में साहसप्रधान, बुद्धिप्रधान और कर्मप्रधान लोग होते हैं। कोई भी आदमी एक प्रकार की शक्ति वाला नहीं होता किंतु शक्ति वह कहलाती है, जो जाग जाती है। किसी में पौरुष और पराक्रम की शक्ति जाग जाती है। किसी में बुद्धि की क्षमता प्रखर होती है। अनेक व्यक्तियों में अनेक प्रकार की शक्तियां जागती हैं। एक व्यक्ति पढ़ने में बहुत तेज है पर कला-शिल्प में कुछ नहीं है। एक व्यक्ति कला-शिल्प में बहुत दक्ष है पर पढ़ने में मंद है । शक्ति का जागरण एक प्रकार का नहीं होता। अनेक प्रकार की शक्तियों की तरतमता होती है। समाज की जितनी अपेक्षाएं होती हैं,
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