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________________ २४ कर्मणा जाति भगवान ऋषभ राज्य और समाज की व्यवस्था का प्रवर्तन कर रहे थे। राज्य और समाज की व्यवस्था में कार्य का विभाजन जरूरी होता है। मुख्य प्रश्न यह था—किस व्यक्ति को किस कार्य में लगाया जाए? जब यौगलिक या अरण्य का जीवन था तब न व्यवस्था की जरूरत थी, न कार्य विभाजन की जरूरत थी और न श्रम के बंटवारे की जरूरत थी। जिसने जैसा चाहा, वैसा कार्य कर लिया। जहां समाज के निर्माण का प्रश्न है, वहां विभाग अत्यन्त जरूरी है। त्रिवर्ण व्यवस्था भगवान ऋषभ ने समाज को तीन भागों में विभाजित किया। एक विभाग का आधार बना-पराक्रम, एक विभाग का आधार बना-व्यवसाय और एक विभाग का आधार बना-उत्पादन। समाज के लिए उत्पादन का कौशल जरूरी है, विनिमय की आवश्यकता है और सामाजिक हितों का संरक्षण अपेक्षित है। यदि उत्पादन नहीं है तो विनिमय की बात नहीं आएगी। कृषि शब्द उत्पादन का प्रतीक है। जो उत्पादक वर्ग बना, वह कृषक वर्ग कहलाया। उसका कार्य था-उत्पादन करना और सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति करना। दूसरा वर्ग बना व्यवसाय करने वाला। जो उत्पादन हुआ है, उसे जनता तक पहुंचाना। उसका माध्यम बना-विनिमय करना, लेना-देना। उसका प्रतीक शब्द है-स्याही या लेखनी। जब दो वर्ग बन गए तब संघर्ष की संभावना भी बन गई। इस स्थिति में एक वर्ग बना-संरक्षक वर्ग। वह क्षत्रिय कहलाया। उसका प्रतीक बना तलवार। क्षत्रिय वर्ग, व्यापारी वर्ग और कृषि वर्ग-इन तीनों विभागों के आधार पर समाज को बांट दिया गया। यह त्रिवर्ण व्यवस्था है। चतुर्वर्ण व्यवस्था वैदिक विद्वानों ने समाज को चार भागों में बांटा। उसके चार आधार थे-बुद्धि, पराक्रम, आवश्यकता-पूर्ति और सेवा। माना जाता है कि सृष्टि की रचना हुई और उसमें ब्राह्मण ब्रह्मा के सिर से पैदा हुआ। क्षत्रिय भुजा से पैदा हुआ। वैश्य पेट से और शूद्र पैरों से पैदा हुआ। हम इन शब्दों को पकड़ेंगे तो बात बहुत अटपटी लगेगी। इसी आधार पर ब्राह्मण को उच्च और शूद्र को नीचा मान लिया गया। यदि हम प्रतीकों की सम्यक् व्याख्या करें तो सारी धारणा ही बदल जाए। यह सारी प्रतीकात्मक भाषा है। जो दिमाग से काम लेता है, वह ब्राह्मण है। इसका अर्थ है-जो बुद्धि से काम लेता है, उसे सिर से पैदा हुआ मान लें। पौरुष का प्रतीक है-भुजा ! जो पौरुष से काम लेता है, उसे भुजा से पैदा हुआ मान लें। वह है-क्षत्रिय। वैश्य की उत्पत्ति मानी गई है पेट से। पेट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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