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जातिवाद तात्त्विक नहीं है
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पास पहुंचे। यज्ञ का अनुष्ठान चल रहा था। बड़े-बड़े पंडित, पुरोहित, उपाध्याय
और छात्र उस यज्ञ में लगे हुए थे। मुनि यज्ञशाला के पास खड़े हो गए। यज्ञ में उपस्थित ब्राह्मण कुमारों ने मुनि को देखा। वे मुनि की वेशभूषा को देखकर उनका उपहास करने लगे। मुनि के शरीर पर पूरे वस्त्र नहीं थे। उनके विचित्र रूप को देखकर ब्राह्मणों ने पूछा
'तुम कौन हो?' 'मैं भिक्षु हूं।' 'यहां क्यों आए हो?' 'भिक्षा लेने के लिए।' 'भिक्षा लोगे?' 'हां!'
जातिवाद का नाग फुफकार उठा। ब्राह्मण आवेश से भर गए। उन्होंने कहा-'चले जाओ यहां से। तुम यहां भिक्षा लेने आए हो? तुम्हें पता नहीं है, यहां ब्राह्मण यज्ञ कर रहे हैं। यह भिक्षा जातिमान ब्राह्मणों के लिए है, तुम्हे नहीं मिलेगी।'
__ मुनि बोले-'मैंने देखा-तुम्हारे यहां बहुत रसोई बन रही है, सहज ही बहुत अन्न पकाया जा रहा है। उसमें से कुछ इस भिक्षु को मिल जाए, और कोई लेना-देना नहीं है।'
ब्राह्मण बोले-'नहीं! नहीं मिल सकता। जो जाति से उच्च हैं, उन्हें ही यह अन्न मिल सकता है। जो विद्या से उच्च हैं, उन्हीं के लिए यह भोजन है। तुम जाति से हीन हो, क्योंकि चांडाल पुत्र हो। तुम विद्या से हीन हो, क्योंकि तुमने वेद नहीं पढ़े हैं, इसलिए तुम्हें यह अन्न नहीं मिल सकता।'
मुनि बोले-'तुम जाति से अपने आपको महान मानते हो, वस्तुतः तुम महान नहीं हो। तुम आवेश में हो, अभिमान से भरे हुए हो और साथ-साथ हिंसा से जघन्य पाप का बन्ध कर रहे हो। तुम विद्या से भी महान नहीं हो सकते। इस संसार में तुम केवल वाणी का भार ढो रहे हो। 'शास्त्रं भारोऽविवेकिनां'-तुम्हारे लिए शास्त्र भार बन रहे हैं। तुम इसका हृदय नहीं समझ पाए हो।'
मुनि और ब्राह्मणों के बीच लंबा संवाद चला। एक ओर त्याग-तपस्या का बल था, दूसरी ओर जाति का अहंकार था। अन्ततः अहंकार हार गया, त्याग और तपस्या का बल विजयी बन गया। ब्राह्मण मुनि के चरणों में नत हो गए। सदा हारता है अहंकार
अहंकार सदा हारता है। अन्तिम विजय समत्व की होती है, तप की होती है। जहां समता है, त्याग है, वहां अहंकार टिक नहीं पाता। एक सेठ के मन में धन का अहंकार जाग गया। उसने धन के प्रदर्शन की एक योजना तैयार की। उसने घोषणा करवाई–मेरी मां के पड़पोता हुआ है इसलिए मैं अपनी मां की पूजा कराऊंगा। घोषणा हो गई। अनेक लोग आ गए। पंडित को बुलाया
गया। सेठ ने अपनी मां को सोने की चौकी पर बिठाया। पूजा विधि सम्पन्न हुई। Jain Education International For Private & Personal Use Only
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