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________________ १५४ महावीर का पुनर्जन्म विजयाली ने आज उपाध्याय यशोविजयजी ने आग्रह के संदर्भ में अत्यन्त मार्मिक दृष्टान्त दिया है मनोवत्सो युक्तिगवीं, मध्यस्थस्यानुधावति। तामाकर्षति पुच्छेन, तुच्छाग्रहमनःकपिः।। जो पुरुष मध्यस्थ मनोवृत्ति वाला होता है, उसका मनरूपी बछड़ा युक्तिरूपी गाय के पीछे-पीछे दौड़ता है और जो पुरुष तुच्छ आग्रह में जकड़ा रहता है, उसका मनरूपी बंदर उस युक्तिरूपी गाय की पूंछ को अपनी ओर खींचता रहता है। प्रश्न मानवीय अधिकार का बुद्धि, न्याय और अधिकार के आधार पर जातिवाद का समर्थन नहीं किया जा सकता। दो प्रकार के अधिकार माने जाते हैं-कानूनी अधिकार और नैतिक अधिकार। इन मानवीय अधिकारों को इस युग में बहुत महत्त्व मिला है, सारे राष्ट्र चौकन्ने हो जाते हैं। समाचार पत्रों में पढ़ा-चीन ने तिब्बत के सन्दर्भ में दलाईलामा से बातचीत का प्रस्ताव रखा है। चीन के पास विशाल साम्राज्य शक्ति है, दलाईलामा के पास कुछ भी नहीं है। जो तिब्बत था, वह भी छूट गया। कुछेक हजार लोग भारत में निर्वासित जीवन बिता रहे हैं। वे हिन्दुस्तान की सहानुभूति पर जी रहे हैं। इस संदर्भ में दलाईलामा के साथ जो बातचीत का प्रस्ताव किया है, उसका महत्त्व बढ़ जाता है। प्रश्न होता है-ऐसा क्यों किया गया? प्राचीन काल में ऐसा होना सम्भव नहीं था। आज मानवाधिकार का प्रश्न बहुत शक्तिशाली बन गया है। स्वतंत्रता मानव का अधिकार है, शिक्षा मानव का अधिकार है, रोजगार मानव का अधिकार है। मानवाधिकार की जो आज व्याख्या हुई है, उस आधार पर अनेक मानवीय समस्याएं सुलझ रही हैं। कोई भी राष्ट्र, चाहे कितना ही शक्तिशाली हो, मानवाधिकार का मनचाहा अतिक्रमण नहीं कर सकता। पंजाब की समस्या को लेकर अमेरिकी सीनेट के सदस्य ने मानवाधिकार का प्रश्न उठाया तो भारत को भी सावधान होना पड़ा। कहा गया-हिन्दुस्तान को दी जाने वाली सहायता बन्द होनी चाहिए क्योंकि पंजाब में हिन्दुस्तान की सरकार मानवाधिकारों का अतिक्रमण कर रही है। आज एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न बन गया है-मानवाधिकार। एक आदमी दूसरे आदमी को घृणित माने, जातिभेद के कारण, रंगभेद के कारण या किसी अन्य सामाजिक कारण से व्यक्ति के अधिकार छीन लिए जाएं, क्या यह मानवाधिकार का अतिक्रमण नहीं है? आज यह बहुत स्पष्ट है। यह अतिक्रमण पहले भी चलता था, आज भी चलता है। प्रश्न भी होता है-यह क्यों चलता है? इसके पीछे जो प्रेरणा है, वह बुद्धि की नहीं है। वह प्रेरणा है अहंकार की। अतिक्रमण की पृष्ठभूमि में मनुष्य का अहंकार काम कर रहा है और इसका जीवित निदर्शन है हरिकेश मुनि का आख्यान। त्याग की विजय : अहंकार की पराजय __हरिकेश मुनि जाति से चांडाल थे। बड़े तपस्वी थे। वे एक-एक मास का तप कर रहे थे। पारणे के दिन वे भिक्षा के लिए घूमते-घूमते एक यज्ञ मंडप के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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