________________
आयुर्वेद का सिद्धान्त है-व्यक्ति के बीमारी या दर्द होता है। दर्द दर्द है, बीमारी बीमारी है। घुटनों में दर्द होता है तो कहा जाता है-घुटने में दर्द हो गया। कमर में दर्द है तो कहा जाता है-कमर का दर्द हो गया। दर्द आखिर दर्द ही है। केवल स्थान-भेद से नाम-भेद हो गया। अहंकार अहंकार है, अभिव्यक्ति के भेद से उसके अनेक रूप बन जाते हैं। जाति, रंग और वर्ण
हिन्दुस्तान में जाति का अहंकार प्रबल बना। कहीं रंग का अहंकार प्रबल है। गोरे लोगों का अहंकार काले लोगों पर कहर ढा रहा है। दक्षिण अफ्रीका में रंग-भेद के आधार पर यहां तक नियम बना दिए गए-जिस सड़क से गोरा आदमी जाता है, उस सड़क से काला आदमी नहीं जा सकता। काला आदमी अमुक-अमुक पथों से नहीं जा सकता। गोरे व्यक्ति पर उसकी छाया भी नहीं पड़नी चाहिए। जिस वायुयान या रेल के डिब्बे में गोरे आदमी बैठते हैं, उसमें काले आदमी नहीं बैठ सकते। आज भी रंगभेद काफी तीव्र बना हुआ है। अहंकार कभी जातिभेद के रूप में अभिव्यक्त हो गया. कभी रंगभेद के रूप में प्रकट हो गया और कभी वर्गभेद के रूप में अभिव्यक्त हो गया। एक ओर उच्चवर्ग है, दूसरी ओर निम्नवर्ग है। उच्चवर्ग का अहंकार वर्गभेद को उभार देता है। उच्चवर्ग और निम्नवर्ग की जाति एक ही है पर उनमें वर्गगत अन्तर परिलक्षित होता है। उच्चवर्ग का अहंकार नीचवर्ग को अपना रूप बताना चाहता है, अपने धन-वैभव का प्रदर्शन करना चाहता है। इस वर्ग-भेद से अहंकार का एक और विभाग हो गया। किसी व्यक्ति को सत्ता मिली, अहंकार बढ़ गया। अहंकार की अभिव्यक्ति का एक माध्यम विकसित हो गया। कुर्सी छूटी, अहंकार गल गया। धन मिला, अहंकार बढ़ गया, धन चला गया, अहंकार दब गया। यह सारा अहंकार का मायाजाल है। इसमें हमारी बुद्धि काम नहीं देती। हमारी बुद्धि, हमारे तर्क, हमारी मान्यताएं वहां जाती हैं जहां हमारी वृत्तियां उन्हें ले जाती हैं।
संस्कृत का एक प्रसिद्ध श्लोक है :
आग्रही बत! निनीषति युक्ति, यत्र तत्र मतिरस्य निविष्टा। पक्षपातरहितस्य तु युक्तिः , यत्र तत्र मतिरेति निवेशम् ।।
आग्रही व्यक्ति तर्क का प्रयोग करता है और पक्षपात रहित व्यक्ति भी तर्क का प्रयोग करता है। दोनों तर्क का प्रयोग करते हैं किन्तु एक व्यक्ति, जिसमें मान्यता का एक अभिनिवेश बन गया, पकड़ हो गई, वह सोचता है-मुझे इसी बात का समर्थन करना है। उसकी जो मान्यता या मति बन जाती है, वह उसके समर्थन में ही तर्क खोजता है। जो व्यक्ति पक्षपात रहित है, वह व्यक्ति जहां युक्ति है वहां अपनी मति का प्रयोग करेगा। वह एक न्यायपूर्ण मान्यता के साथ अपनी तर्क-शक्ति को नियोजित करेगा। एक आग्रही व्यक्ति ऐसा नहीं कर सकता। उसके सामने उसकी पकड़ मुख्य होती है। वह न्याय या औचित्य को नहीं देखता।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org