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________________ २३ जातिवाद तात्त्विक नहीं है। आज से दो हजार वर्ष पहले एक संघर्ष चलता था। समाज में एक द्वन्द्व था। एक ओर जातिवाद का समर्थन किया जा रहा था, दूसरी ओर जातिवाद का खंडन किया जा रहा था। एक शिष्य ने आचार्य से जिज्ञासा की-'गुरुदेव! यह बात हर आदमी समझ सकता है कि किसी व्यक्ति से घृणा नहीं करनी चाहिए। फिर यह जातिवाद चर्चा का विषय क्यों बना? यह एक दार्शनिक विषय बन गया है। इस पर बड़े-बड़े ग्रन्थ लिखे जा रहे हैं। श्रमण परंपरा के एक विद्वान् कहते वेदः प्रामाण्यं कस्यचित् कर्तृवादः, स्नाने धर्मेच्छा जातिवादावलेपः। संतापारंभः पापहानाय चैते, ध्वस्तप्रज्ञानां पंचचिन्हानि जाये।। जड़ता के पांच लक्षण हैं। उनमें से एक है जातिवाद का अहंकार। एक ओर जातिवाद को समर्थन मिल रहा है, दूसरी ओर उसे जड़ता का लक्षण माना जा रहा है। क्या समर्थन करने वालों में इतनी भी समझ नहीं है कि वे इस सचाई को समझ सकें।' यह प्रश्न बहुत स्वाभाविक है। यह एक शिष्य का ही प्रश्न नहीं है, हजारों-हजारों लोगों के मानस में यह प्रश्न उभरता है। बहुत सूक्ष्म और गंभीर बात को समझने में कठिनाई हो सकती है। एक सूई की नोक टिके उतने स्थान में अनन्त जीव हैं, यह समझना कठिन हो सकता है किन्तु एक आदमी दूसरे आदमी को नीचा न माने, भाई माने, उसके साथ भाईचारे का व्यवहार करे, इतनी स्थूल बात समझने में दुविधा क्यों होती है? अनेक ग्रन्थों के लेखक, तार्किक और समझदार व्यक्ति भी इतनी स्थूल बात समझ नहीं पाते, क्या यह विस्मयजनक नहीं है? आचार्य ने कहा-'वत्स! तुम्हारा प्रश्न उचित है पर प्रश्न बौद्धिकता का नहीं है। जितने हम बुद्धिमान् हैं उतने बुद्धिमान् सामने वाले भी हो सकते हैं, वे हमसे अधिक बुद्धिमान् भी हो सकते हैं। उनमें भी चिंतन की शक्ति है, विचार की शक्ति है। चिंतन, विचार और बौद्धिक क्षमता का अंतर इसका कारण नहीं शिष्य ने जिज्ञासा की-'गुरुदेव! फिर जातिवाद के समर्थन का कारण क्या है?' आचार्य ने कहा-'मनुष्य के व्यवहार के पीछे उसकी वृत्तियां काम करती हैं। व्यक्ति की प्रत्येक मान्यता की पृष्ठभूमि में अनेक वृत्तियां सक्रिय रहती हैं। जितनी समाज की मान्यताएं बनीं हैं, संगठन की मान्यताएं बनी हैं, उनके पीछे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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