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महावीर का पुनर्जन्म
अनुभूति। करुणा से आप्लावित अनुशासन व्यक्ति के अवचेतन मन पर प्रभाव डालता है। मघवागणी के मानस में गहरी संवेदना थी। उनका अनुशासन करुणा से आप्लावित था। उनके बारे में जयाचार्य ने कहा था-'मघजी पंडित हैं।' जयाचार्य जैसे प्रखर और मेघावी व्यक्ति के मुंह से 'पंडित' का विशेषण मिलना बहुत कठिन था किन्तु मघवागणी का बाहुश्रुत्य जयाचार्य के मानस को छू गया था।
कहा जाता है-युवाचार्य मघवा स्वाध्याय कर रहे थे। एक मुनि आया। उसने मुट्ठी भर रेत युवाचार्य मघवा के कंधे पर डाल दी। मघवागणी ने मुड़कर रेत डालने वाले साधु को देख लिया। रेत डालने वाला संत चला गया। युवाचार्य मघवा ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। वे पुनः ध्यान में लीन हो गए। प्रश्न होता है क्या एक युवाचार्य के लिए यह संभव है? एक सामान्य साधु युवाचार्य पर रेत गिरा दे और वे यह भी न पूछे-तुमने ऐसा काम क्यों किया? तुम क्या चाहते हो?
यह गंभीरता और सहिष्णुता का निदर्शन है। एक आचार्य या बहुश्रुत को समुद्र के समान गंभीर होना होता है। जो व्यक्ति समुद्र के समान गंभीर होता है, वह प्रत्येक स्थिति को सहन कर सकता है।
__ आचार्य भिक्षु ने संघ की प्रगति के संदर्भ में निर्देश दिया-बहुश्रुत जो बात कहे, उसे मान जाए। अनेक स्थलों पर आचार्य भिक्षु का यह निर्देश प्राप्त होता है। प्रश्न प्रस्तुत हुआ-बहुश्रुत किसे माना जाए? हर व्यक्ति अपने आप को बहुश्रुत के रूप में प्रस्तुत कर सकता है। ऐसी स्थिति में बहुश्रुत की कसौटी क्या होगी? जयाचार्य ने बहुश्रुत की परिभाषा प्रस्तुत की-मनमाना बहुश्रुत बहुश्रुत नहीं है। बहुश्रुत वह है जिसे आचार्य बहुश्रुत माने। आचार्य द्वारा अनुशंसित बहुश्रुत ही बहुश्रुत है।
बहुश्रुत अत्यन्त पूज्य शब्द रहा है। बहुश्रुत की पूजा करना किसी भी व्यक्ति या संघ के लिए गौरव की बात होती है। यदि बहुश्रुत की आधुनिक परिभाषा की जाए तो कहा जा सकता है—प्रज्ञा को जगाने का अर्थ है-बहुश्रुत बनना और बहुश्रुत बनने का अर्थ है प्रज्ञा का जागरण। जिसकी प्रज्ञा जाग गई, वह बहुश्रुत बन गया, वह सबके लिए प्रशंसनीय और आदरणीय बन गया।
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