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महावीर का पुनर्जन्म
टॉलस्टाय से एक युवक ने पूछा- 'जीवन की सफलता का सूत्र क्या है?" टॉलस्टाय ने कहा- 'धैर्य ।' युवक के मन में सन्देह था । उसने सोचा- धैर्य भी सफलता का सूत्र हो सकता है? युवक बोला - ' आप बड़े दार्शनिक हैं विचारक हैं । आपने जो उत्तर दिया, वह मेरी समझ में नहीं आता। क्या धैर्य रखने से सफलता मिल जाएगी?"
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पाएगा।'
'हां, जरूर मिलगी ।'
'एक चलनी है और उसमें पानी रखना है। क्या उसमें पानी टिक
'धैर्य रखोगे तो टिक जायेगा।'
'धैर्य कब तक रखूं ?"
'जब तक पानी जम न जाए, बर्फ न बन जाए तब तक धैर्य रखो।"
आज इतना धैर्य कहां है! पानी जमने तक धैर्य रखा जा सके, ऐसी स्थिति में मनुष्य नहीं है । सामान्य कष्टों में भी उसकी धृति डोल जाती है।
संत तिरुवल्लुवर दक्षिण के महान् संत हुए हैं। वे जैन परम्परा के संत थे, जुलाहे का काम करते थे। उन्होंने एक ग्रन्थ लिखा-कुरल । दो हजार वर्ष बीत जाने के बाद भी वह ग्रन्थ नीतिशास्त्र का एक मूल्यवान ग्रन्थ माना जाता है । अणुव्रत आन्दोलन की व्याख्या करने में एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ बन सकता है कुल । उसमें नैतिकता के महत्त्वपूर्ण सूत्र मिलते हैं । वह नैतिकता का एक महान ग्रन्थ है, जिसे दक्षिण में ही नहीं, विश्व भर में प्रतिष्ठित ग्रन्थ माना जाता है ।
संत तिरुवल्लुवर बुनाई का काम कर रहे थे, वे एक साड़ी बुन रहे थे। कुछ युवक आए। जवानी अवस्था में उन्माद सहज ही होता है । वे युवक कुछ मनचले थे, पांच सात मिलकर आए थे। एक युवक बोला- 'तिरुवल्लुवर ! साड़ी का मूल्य क्या है?'
'दो रुपये ।'
'अच्छा! मैं देखता हूं।' उसने साड़ी हाथ में ली, उसके दो टुकड़े कर दिए । उसने फिर पूछा - ' बोलो, अब इस साड़ी का मूल्य कितना है?"
'एक रुपया ।'
युवक ने उस साड़ी को फिर फाड़ना शुरू कर दिया, साड़ी का लीरा - लीरा बना दिया। युवक ने फिर अल्हड़पन से पूछा- अब इसका कितना मूल्य है?
संत ने कहा- 'भाई! अब इसके टुकड़े-टुकड़े हो गए हैं। यह अब न मेरे काम की है और न तेरे काम की। यह किसी के काम की नहीं हैं।' इतना होने पर भी संत न क्रोध में आए और न उनके मन में युवक के प्रति अन्यथा भाव जागा । वे बिलकुल शांत थे। सारे युवक अचम्भे में थे। वह युवक बोला - 'ये लो तुम्हारे दो रुपये ।'
"किस बात के दो रुपये?'
'मैंने तुम्हारी साड़ी फाड़ डाली इसलिए दो रुपये ले लो।'
'मेरी साड़ी का मूल्य तुम चुका नहीं सकते।'
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