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पूजा करें बहुश्रुत की
१४७ जीवन के रहस्यों को खोजा है, उसकी पूजा करना हमारा धर्म है, कर्त्तव्य है। हम उस व्यक्ति की पूजा करें, जो अन्धकार में प्रकाश को ला दे। बहुश्रुत : निश्चय की भाषा
जयाचार्य ने आचार्य भिक्षु के जीवन चरित्र में लिखा-आचार्य भिक्षु अमाप्य हैं। उन्हें कोई माप नहीं सकता। गुरु को कभी तोला नहीं जा सकता। समुद्र की गहराई को कभी मापा नहीं जा सकता। बहुश्रुत का अर्थ कोरा ज्ञान से जुड़ा हुआ नहीं है। ज्ञानराशि और आचार राशि को हम उपयोगिता की दृष्टि से बांट देते हैं किन्तु निश्चय को कभी बांटा नहीं जा सकता। व्यवहार की भाषा में ज्ञान, दर्शन और चरित्र की त्रिपदी होती है किन्तु निश्चय की भाषा में आत्मा को जानना ज्ञान, आत्मा का निश्चय करना दर्शन और आत्मा में रमण करना चरित्र है। आत्मा से बाहर कुछ नहीं है। आत्मा ही ज्ञान, आत्मा ही दर्शन और आत्मा ही चरित्र है। हम निश्चय की भाषा में विचार करें-बहुश्रुत वह है, जो दर्शन, ज्ञान और चारित्र की त्रिपदी का धारक होता है।
शिष्य ने आचार्य से पूछा-'भंते! बहुश्रुत में ऐसे कौन से गुण होते हैं, जिनके कारण वे लोगों के द्वारा पूजनीय बनते हैं?'
आचार्य ने कहा-'बहुश्रुत में निर्मलता, पराक्रम, आशा, धैर्य, उदारता, उच्चत्व, और गाम्भीर्य-ये सभी गुण आत्मगत होते हैं।
जो अपने प्रयत्न से अपने आपका साक्षात्कार करता है, वह चिदानन्दमय-आत्ममय हो जाता है और वह जन-जन के द्वारा पूजा जाता है।'
स्वच्छता शौर्यमाशा च, धैर्यमौदार्यमात्मगम् । उच्चता सुगभीरत्वं, बहुश्रुते श्रुता अमी।। यः करोति स्वयत्नेन, साक्षात्कारं निजात्मनः।
चिदानन्दमयश्चात्मा, तन्मयः पूज्यते जनैः।। युग्मम् ।। बहुश्रुत पूजा
उत्तराध्ययन का ग्यारहवां अध्ययन है-बहुश्रुत पूजा। उसमें बहुश्रुत की पूजा की गई है। बहुश्रुत की सारी विशेषताओं को उपमाओं के द्वारा प्रदर्शित किया गया है। कहा गया-बहुश्रुत एक घोड़े के समान है, बहुश्रुत वृषभ, हाथी, सिंह और शक्र के समान है। अगर बहुश्रुत कोरा ज्ञानी होता तो ये उपमाएं नहीं होतीं। बहुश्रुत योद्धा भी होता है। बहुश्रुत प्रयन्न होता है, स्वच्छ होता है जैसे शंख में रखा हुआ दूध। वह बाहर से भी प्रसन्न होता है, भीतर से भी प्रसन्न होता है। स्वच्छता का नाम है प्रसन्नता। वह अटूट धैर्य से संपन्न होता है।
शिष्यों की प्राचीन परम्परा को लें। शिष्य गुरु के पास गए, निवेदन किया-'मुझे पढ़ाएं!' गुरु ने कहा-'झाडू निकालो।' गया था पढ़ने के लिए और काम मिला झाडू निकालने का। वह सफाई करने का काम करता रहा। एक दिन बीता, एक महीना बीता, एक वर्ष बीत गया। वह बोला-'गुरुदेव! पढाएं' गुरु ने कहा-'नहीं, अभी सफाई करो।' वह वर्षों तक सफाई करता रहा। न शिष्य हिला, न गुरु पिघले। सफाई करते-करते आखिर एक समय आया, गुरु से एक
मंत्र मिला। जो पढ़ना था, जो पाना था, वह एक दिन में उपलब्ध हो गया। . Jain Education International For Private & Personal Use Only
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