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________________ पूजा करें बहुश्रुत की बहुश्रुत शब्द बहुत मूल्यवान् है। जैन आगमों की परम्परा में कुछ प्रतिष्ठित शब्द हैं। उनमें से एक प्रतिष्ठा प्राप्त शब्द है बहुश्रुत। इसके उच्चारण के साथ गौरव की अनुभूति होती है। भाष्य साहित्य में इसकी बहुत चर्चा हुई है। बहुश्रुत की परिभाषा के तीन विकल्प किए गए हैं जघन्य बहुश्रुत मध्यम बहुश्रुत उत्कृष्ट बहुश्रुत जो आचार प्रकल्प का ज्ञाता है, निशीथ का ज्ञाता है। वह जघन्य बहुश्रुत जो कल्प और व्यवहार का ज्ञाता है, वह मध्यम बहुश्रुत है। जो नवें-दसवें पूर्व को धारण करने वाला है, वह उत्कृष्ट बहुश्रुत है। धवला के अनुसार बारह अंगों का धारक बहुश्रुत होता है। बहुश्रुत का संबंध ज्ञानराशि से है। सहज प्रश्न होता है-क्या निशीथ इतनी बड़ी ज्ञानराशि है, जिसके आधार पर बहुश्रुत को परिभाषित किया गया? क्या कल्प और व्यवहार इतनी बड़ी ज्ञानराशि है, जिसे पढ़ने वाला व्यक्ति बहुश्रुत बन जाए? छेदसूत्रों का महत्त्व बहुत बार एक विचार मेरे मन में उठता है-विदेशी विद्वानों ने जैन आगमों पर काम शुरू किया। उन्होंने छेदसूत्रों पर बहुत खोज की और बहुत विस्तार से उन पर काम किया। प्रश्न होता है उन्होंने छेदसूत्रों को ही क्यों चुना? जीवन की एक जो शैली है, प्रणाली है, उसमें कोरा ज्ञान नहीं होता, कोरा आचार और कोरा व्यवहार नहीं होता। जीवन की प्रणाली में ज्ञान, आचार, व्यवहार, रहन-सहन, चर्या, अनुशासन, व्यवस्था ये सब होते हैं। इन सबको मिलाकर कहा जाता है जीवन की प्रणाली। सामुदायिक जीवन किसी एक बात से नहीं चलता और व्यक्ति का जीवन भी किसी एक बात से नहीं चलता। उसके सर्वांग सम्पूर्ण होने का अर्थ है-जीवन के अशेष पहलुओं का स्पर्श । छेदसूत्रों का अध्ययन विदेशी विद्वानों ने किया और इसका कारण है-वे लोग सामाजिक या सामुदायिक जीवन में विशेष रुचि रखते हैं। सामुदायिक जीवन में कैसे रहा जाए? इसका विश्लेषण महत्त्वपूर्ण होता है। अकेले व्यक्ति का जीवन कैसा होता है, यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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