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महावीर का पुनर्जन्म
कुछ बनने का अवसर देता है। उनके जीवन-दर्शन के आलोक में व्यक्ति अपना जीवन ढाल सकता है। उनका श्रेष्ठ आचरण व्यक्ति के आचरण का आधार बनता है।
भूगोल को पढ़े बिना व्यक्ति भौगोलिक स्थितियों से अनजान रह जाता है। किस समय किस क्षेत्र का क्या प्रभाव था? क्यों था? भौगोलिक घटनाओं को जाने बिना इसका ज्ञान संभव नहीं है। किस समय सौरमंडल का क्या विकिरण होता है, यह जानने के लिए खगोल को जानना आवश्यक है। जैन आचार्यों ने इस विषय पर बहुत विस्तार से विमर्श किया है--किस समय सूर्य अथवा दूसरे ग्रह किस अवस्था में होते हैं और उनका हमारे व्यक्तित्व पर क्या प्रभाव होता है? जैन आगम सूर्यप्रज्ञप्ति एवं उसकी टीका में ज्योतिष का विशद विवेचन है। ज्योतिष का अर्थ केवल फलित ज्योतिष ही नहीं होता, सौरमंडल का विकिरण भी ज्योतिष का विषय है। सौरमंडल के विकिरण हमें कैसे प्रभावित करते हैं? किस अवस्था में कैसे विघ्न आ सकता है? उन विघ्नों का निवारण कैसे किया जा सकता है? किस समय का विकिरण ज्ञान और चरित्र-विकास में सहयोगी बनता है, इन सारे तथ्यों को जानने के लिए खगोल का ज्ञान अपेक्षित है। मानसिक विकास क्यों?
__व्यक्तित्व निर्माण का दूसरा घटक है-मानसिक विकास। व्यक्ति के जीवन में बहुत सारी समस्याएं आती हैं, अनेक अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियां आती हैं। जब तक मन का विकास नहीं होता, इन समस्याओं को झेलने की शक्ति प्राप्त नहीं होती। शिक्षा का उद्देश्य केवल तथ्यों को जानना नहीं है। उसका उद्देश्य है-सामुदायिक जीवन में आने वाली समस्याओं को झेलने के लिए मन को मजबूत और बलवान बनाना। मानसिक विकास के अभाव में परिस्थितियों को झेलने की क्षमता प्राप्त नहीं हो सकती। दायित्व बोध का प्रश्न
शिक्षा का एक उद्देश्य है-भावात्मक विकास। प्रत्येक व्यक्ति सामाजिक दायित्व से बंधा हुआ है। भावात्मक विकास दायित्व निर्वाह के लिए आवश्यक है। सामुदायिक जीवन जीने वाले व्यक्ति में दायित्व बोध का होना जरूरी है। बहुश्रुत को धुरीण कहा गया। उसकी तुलना उस बैल से की गई, जो गृहीत भार को बीच में नहीं डालता, पार लगा देता है। दायित्व की पूर्ति के लिए धैर्य का होना बहुत आवश्यक है। धुरीण व्यक्ति ही दायित्व को निभा सकता है। दायित्व दायित्व होता है, वह बड़ा या छोटा नहीं होता।।
__अरविंद आश्रम में परम्परा है। आज एक व्यक्ति को प्रोफेसर बनाया गया, पढ़ाने का दायित्व सौंपा गया। कल उसे भोजनालय में थालियां साफ करने का दायित्व भी सौंपा जा सकता है। आम लोग प्रिंसिपल के दायित्व को बड़ा मानते हैं। थाली साफ करने के काम को बहत छोटा समझा जाता है। दायित्व के साथ यह एक गलत अवधारणा जुड़ी हुई है। जैन मुनि के लिए कहा गया-'नन्नत्थ निज्जरट्ठयाए'-मुनि का प्रत्येक कार्य निर्जरा के लिए हो। मुनि का
ज्ञानार्जन, अध्यापन, भिक्षाटन और स्थान का प्रमार्जन-सफाई, सब कुछ निर्जरा Jain Education International For Private & Personal Use Only
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