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________________ जैन शिक्षा प्रणाली १३६ व्यक्ति में अनावरण की जो क्षमता है, उसे बढ़ाते चले जाना, अनावरण को एक निश्चित बिन्दु तक पहुंचा देना। __ व्यक्ति बौद्धिक सीमा का अतिक्रमण कर प्रज्ञा की सीमा में चला जाए, अतीन्द्रिय ज्ञान की सीमा में पहुंच जाए। व्यक्ति सम्यग्दृष्टि बने। दर्शन मोह का क्षयोपशम मिथ्यादृष्टि के भी होता है। शिक्षा का उद्देश्य है—व्यक्ति मिथ्यादृष्टि न रहे, वह दर्शन मोह के क्षयोपशम को बढ़ाता चला जाए, सम्यग्दृष्टि बन जाए। व्यक्ति अप्रमत्तता की भूमिका तक पहुंच जाएं। उसके चारित्रमोह का क्षयोपशम बढ़ जाए, सम्यग्दृष्टि बन जाए। संयम में शक्ति का प्रयोग। शक्ति प्रत्येक प्राणी में है किन्तु उसका उपयोग असंयम में अधिक होता है। शिक्षा के द्वारा ऐसी क्रियात्मक शक्ति जागे, जिसका संयम में अधिकतम उपयोग हो, व्यक्ति संयम की दिशा में प्रस्थित हो जाए। विकास का क्रम शिष्य ने जिज्ञासा की-गुरुदेव! प्रज्ञा को जगाने की बात, अतीन्द्रिय ज्ञान तक पहुंचने की बात बहुत प्रिय लगती है। उसके लिए क्या करना चाहिए? प्रज्ञा और अतीन्द्रिय ज्ञान कैसे उपलब्ध हो सकता है? आचार्य ने कहा-विकास का एक क्रम है। बौद्धिक विकास तथ्यों के ग्रहण में उपयुक्त होता है, मानसिक विकास उत्कट समस्याओं को जीतने में और भावात्मक विकास दायित्व पालन में उपयुक्त होता है। इनके विकास का आधार है-शरीर सिद्धि। ये प्रशिक्षण के बिना विकसित नहीं होते। इनके विकास के लिए विद्यार्थी को स्वाध्याय-योग में प्रवृत्त होना चाहिए। विकासो बौद्धिको युक्तस्तथ्यानां ग्रहणे भवेत्। विकासो मानसो युक्तः, समस्या जेतुमुत्कटाः ।। विकासो भावनानां च, युक्तो दायित्वपालने। शरीरसिद्धिरेतेषामाधार इति विश्रुतम् ।। प्रशिक्षणं बिना नैते, संभवन्ति कदाचन। ततः स्वाध्याययोगोऽयं, विद्यार्थिनां प्रवर्तते।। इतिहास और भूगोल को क्यों जानें? व्यक्तित्व निर्माण के लिए बौद्धिक विकास आवश्यक है। व्यक्तित्व के लिए तथ्यों का ज्ञान बहुत जरूरी है। तथ्यों को जानने के लिए इतिहास और भूगोल को जानना होता है, महापुरुषों के चरित्र को जानना होता है। प्राचीन विशिष्ट व्यक्तियों को जानना, उनके जीवन-दर्शन को पढ़ना और उनकी रहन-सहन की पद्धतियों से परिचित होना अतीत से सम्पर्क स्थापित करना है। पुराने लोग कैसे रहते थे? उनका जीवन व्यवहार कैसा था? महावीर कैसे जिए? बुद्ध कैसे जिए? ईसा, कृष्ण और राम कैसे जिए? आचार्य भिक्षु का जीवन-दर्शन कैसा था? तेरापंथ के विशिष्ट संत-मुनि हेमराजजी, मुनि वेणीरामजी आदि का जीवन कितना उदात्त और महान था? महापुरुषों का जीवन चरित्र प्रेरणा देता है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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