________________
२१
जैन शिक्षा प्रणाली
आचार्य ने शिष्य से कहा- 'वत्स! तुम मुनि बन गए हो, इसलिए अपना ध्यान अध्ययन में केन्द्रित करो।'
शिष्य ने निवेदन किया-'गुरुदेव! आपकी प्रेरणा बहुत कल्याणकारी है किन्तु मेरे सामने पढ़ने का उद्देश्य, शिक्षा का दर्शन स्पष्ट नहीं है। क्या पढूं, कैसे पढूं? आदि प्रश्न मेरे मानस में उभरते हैं, मेरे अन्तःकरण को कुरेदते रहते हैं। आप मुझे कृपा कर शिक्षा का दर्शन बताएं, मैं पढ़ने का प्रयत्न करूंगा।'
आचार्य ने कहा-'वत्स! पढ़ने से पहले शिक्षा का दर्शन जानना जरूरी है। प्रत्येक शिक्षा पद्धति के सामने दो बातें स्पष्ट होनी चाहिए। पहली बात है-वह व्यक्ति को क्या मानती है और दूसरी बात है-वह व्यक्ति को क्या बनाना चाहती है? जैन, बौद्ध या वेदान्त की शिक्षा पद्धति हो अथवा आधुनिक विज्ञान की शिक्षा पद्धति, उसमें इन दो बातों की स्पष्टता जरूरी है। जब तक इन दो तत्त्वों का दर्शन स्पष्ट नहीं होता तब तक शिक्षा पद्धति का निर्धारण नहीं हो सकता। जैन दर्शन के अनुसार जो शिक्षा प्रणाली निर्मित हुई है, उसमें दोनों प्रश्नों का समाधान उपलब्ध होता है।' व्यक्ति की योग्यता
जैन शिक्षा पद्धति व्यक्ति को क्षायोपशमिक योग्यता वाला मानती है। इसका अर्थ है
प्रत्येक व्यक्ति में अनावरण की क्षमता है। प्रत्येक व्यक्ति में चारित्रिक विकास की क्षमता है। प्रत्येक व्यक्ति में अपनी आदतों को बदलने की क्षमता है। प्रत्येक व्यक्ति में शक्ति-संवर्धन की क्षमता है।
आवरण को हटाया जा सकता है, चरित्र का परिष्कार किया जा सकता है, आदतों का परिवर्तन किया जा सकता है और शक्ति को बढ़ाया जा सकता है। व्यक्तित्व की इस स्पष्ट परिकल्पना के साथ चार कर्मों का संबंध जुड़ा हुआ
__कर्मशास्त्रीय परिभाषा में देखें-प्रत्येक व्यक्ति में ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोह और अन्तराय ‘कर्म का क्षयोपशम होता है। व्यक्ति की यह क्षायोपशमिक योग्यता जैन शिक्षा पद्धति के निर्धारण का प्रमुख आधार है। इसी आधार पर शिक्षा का उद्देश्य प्रस्तुत किया जा सकता है। शिक्षा का उद्देश्य
जैन शिक्षा पद्धति का उद्देश्य हैJain Education International For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org