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________________ तीर पर पहुंच कर क्यों रुके हो? १३७ लिए उद्यत हो गया। महावीर ने कहा-मेघकुमार! तुम अपने पूर्व-जन्म को देखो। पिछले जन्म में तुम हाथी थे। उस जीवन में, हाथी के भव में, तुमने भयंकर कष्टों को सहन किया है। आज तुम मनुष्य होकर भी सामान्य कष्टों से घबरा गए। महावीर ने मेघकुमार को सम्बोधित कर उसे उसका पूर्वजन्म दिखा दिया। मेघकुमार देख रहा है—'जंगल में दावानल लगी हुई है। एक तृण रहित मैदान में सारे जानवर इकट्ठे हो रहे हैं। वह विशाल मैदान जानवरों से संकुल हो गया है। मैं हाथी के रूप में वहां खड़ा हूं। मैंने अपने शरीर को खुजलाने के लिए एक पैर को ऊपर उठाया। उसी समय एक खरगोश उस रिक्त स्थान में बैठ गया। मैंने खुजलाकर पैर को नीचे रखना चाहा किन्तु उस स्थान पर खरगोश को देखकर मैं अनुकंपा से भर उठा। मैंने सोचा-पैर नीचे रखने से खरगोश मर जाएगा। दयाभाव से वशीभूत होकर मैंने पैर अधर में रख लिया। मेरा शरीर भारी भरकम था। उस स्थिति में मैं ढाई दिन तक खड़ा रहा। मैंने अपार वेदना को समभाव से सहा।' मेघकुमार अपने पूर्वजन्म को देख संबुद्ध हो गया। वह साधुत्व में पुनः स्थिर हो गया। उसने कहा-भंते! मैं आपके चरणों में पूर्ण समर्पित हूं। इन दो आखों को छोडकर मेरा पूरा शरीर आपके चरणों में समर्पित है, आप चाहें जैसे इसका उपयोग करें। मेघकुमार राजकुमार था। यदि पूर्वजन्म में कष्ट प्रत्यक्ष नहीं होते तो उसको स्थिर बनाना कठिन होता। महावीर ने प्रत्यक्ष ज्ञान पर बहुत बल दिया। यदि किसी को समाधि में ले जाना है तो उसे प्रत्यक्ष ज्ञान कराना होगा। समाधि के लिए जरूरी है-हमारी यात्रा परोक्ष से प्रत्यक्ष की दिशा में हो। उसका पहला चरण होगा-हमारे भीतर जो अस्पष्टताएं छिपी हुई हैं, उन्हें स्पष्ट करें। मन में जो गांठें घुली हुई हैं, उन्हें खोलें, जो छिपाव है, उसे स्पष्ट करें। नए नौकर ने मालिक से पूछा- 'मैं आपकी क्या सेवा करूं, आपका क्या काम करूं?' मालिक ने कहा- 'तुम्हारा एक ही काम है, समय पर घड़ी बता देना। जब सुबह पांच बज जाए तब तुम मुझे उठा देना।' नौकर ने कहा-'मुझे घड़ी देखना नहीं आता। जब पांच बज जाए तब आप मुझे बता देना। मैं आपको उठा दूंगा।' __ हम कम से कम घड़ी देखना तो सीखे। घड़ी देखना सीखे बिना समय का स्पष्ट ज्ञान संभव नहीं है। अस्पष्टता को मिटाने का प्रयत्न होगा तो प्रत्यक्ष की दिशा में पहला कदम उठ जाएगा, समाधि की दिशा में प्रस्थान संभव हो पाएगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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