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________________ तीर पर पहुंच कर क्यों रुके हो? का भेद ही समाप्त हो जाएगा, हम एक हो जाएंगे। जो तुम हो वह मैं हूं और जो मैं हूं वह तुम हो। हमारा अद्वैत और अभेद बना रहेगा ।' समाधि : असमाधि १३५ महावीर की विशेषता थी वे सामने वाले व्यक्ति को साक्षात बोध करा देते। शिष्य के मन में समाधि पैदा करना गुरु का काम होता है । समाधि के लिए साक्षात्कार, स्पष्ट ज्ञान कराना जरूरी होता है। जहां अस्पष्टता है, वहां असमाधि है । ज्ञान और व्यवहार में समाधि स्पष्टता की स्थिति में ही संभव बनती है । अस्पष्टता भवेद् यत्रा ऽसमाधिस्तत्र जायतेः । स्पष्टतायां समाधिः स्याद्, ज्ञानजो व्यवहारजः ।। जब तक अस्पष्टता बनी रहेगी, समाधि की बात नहीं सोची जा सकेगी। समाधि के लिए स्पष्टता बहुत आवश्यक है। जब तक अस्पष्टता होती है, मन में समाधि नहीं रहती । स्पष्टता से जुड़ी हुई है समाधि । अनेक व्यक्ति कहते हैं-मुझे अभी तक समाधान नहीं मिला। प्रश्न हुआ— क्यों नहीं मिला? वे कहते हैं-अभी पूरी बात साफ नहीं हुई, स्पष्ट नहीं हुई। जब तक पूरी बात सामने नहीं आती, समाधि नहीं होती । सिद्धांत सर्वज्ञता का भगवान् महावीर ने अतीन्द्रिय ज्ञान पर बहुत बल दिया। अगर चित्त समाधि को पाना है तो प्रत्यक्ष में जीना होगा। परोक्ष में जीने वाला व्यक्ति कभी समाधि के बिन्दु तक पहुंच नहीं सकता । समाधि के चरम बिन्दु को छूना है तो ज्ञान को भी प्रत्यक्ष बनाना होगा। न केवल भारतीय दर्शन अपितु विश्व दर्शन की परम्परा में सर्वज्ञता पर सबसे अधिक बल देने वाला दर्शन जैन दर्शन है । सर्वज्ञवाद की प्रस्थापना सबसे पहले जैन दर्शन ने की। बहुत सारे दर्शनों ने सर्वज्ञवाद का खण्डन किया और उसका उपहास करते हुए उन्होंने कहा सवं पश्यतु मावा, तत्त्वमिष्टं तु पश्यतु । कीटसंख्यापरिज्ञानमस्माकं क्वोपयुज्यते ।। सबको जानो या मत जानो। तुम इष्ट तत्त्व को अवश्य जानो। कितने कीड़े-मकोड़े हैं। यह जानने की क्या उपयोगिता है? राजा ने एक विद्वान से पूछा- अगर तुम ज्ञानी हो तो बताओ, मेरे राज्य में कौए कितने हैं? उसने कहा- पांच हजार । राजा ने कहा- मैं गिनती कराऊंगा । विद्वान बोला- ज्यादा निकल जाए तो मान लीजिए— इतने विदेश से आ गए। यदि कम हो तो मान लीजिए— इतने कौए विदेश चले गए। अस्पष्टता में कोई समाधान नहीं होता, केवल अटकलें और ऊटपटांग बातें चलती हैं। महावीर ने इस सूत्र को पकड़ा। उन्होंने कहा - यदि समाधान पाना है, समाधि को उपलब्ध होना है तो ज्ञान को भी स्पष्ट करना होगा, प्रत्यक्षीकरण करना होगा। कोई भी व्यक्ति महावीर के पास आता, उनसे कोई प्रश्न पूछता तो महावीर उसे सबसे पहले जाति-स्मरण (पूर्वजन्म की स्मृति) का प्रयोग कराते । जाति स्मरण होते ही सारे संशय एक साथ समाप्त हो जाते हैं । कोई संशय रहता ही नहीं है। जब व्यक्ति को पहले जन्म की स्मृति हो गई तब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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