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महावीर का पुनर्जन्म
कोई रेचन कराने वाला मिल जाए, बात को सुनने वाला मिल जाए तो दिमाग का बोझ हलका हो जाता है। ... गौतम ने कहा-'भगवान्! आपने मेरी कैसी स्थिति बना दी है। एक
ओर मुझे सब साधु-साध्वियों में ज्येष्ठ बना दिया, दूसरी ओर मेरी दयनीय दशा देखिए-जिनको मैं दीक्षित करके लाया, जिन्हें शिष्य बनाया, जो मेरे पीछे-पीछे चले, आपके पास पहुंचते-पहुंचते वे एक-एक कर केवली होते चले गए और मैं अभी भी छामस्थ्स हूं। इससे बड़ा भी कोई अन्याय हो सकता है? आप पूछते हैं-असमाधि क्यों? इसका स्पष्ट कारण है—मैंने- जिनको मूंडा, जो मेरे शिष्य बने, वे आपकी परिषद् में पहुंचते-पहुंचते केवली बन गए। मुझे साधना करते हुए इतने वर्ष बीत गए फिर भी प्रत्यक्ष ज्ञान नहीं जागा। कौनसी शिला आड़े आ रही है? मेरी छद्मस्थता दूर क्यों नहीं हो रही है? आवरण दूर क्यों नहीं हो रहा है? महावीर का समाधान
भगवान् ने कहा-गौतम! तुम निराशा में क्यों चले गए? तुमने सारा समुद्र तैर लिया। तुम बहुत सारे छमों को पार कर गए। तुम छम और आवरण के समुद्र को पार कर तट पर पहुंच गए हो
तिण्णो हु सि अण्णवं महं, किं पुण चिट्ठसि तीरमागओ।
अभितुर पारं गमित्तए, समयं गोयम! मा पमायए।।
हमारी ज्ञान-नदी के दो तट हैं-एक परोक्ष का तट और एक प्रत्यक्ष का तट। तुम परोक्ष के तट से चले ओर प्रत्यक्ष के तट पर पहुंच गए। ऐसा लगता है-तट पर पहुंच कर तुम्हारे पैर ठिठक गए हैं, अटक गए हैं, तुम्हारी गति मंद हो गई है। आश्चर्य है-तुम तीर पर पहुंचकर ठहर क्यों गए? यह ठहराव अच्छा नहीं है।
___ बहुत बार ऐसा होता है--आदमी बहुत आगे बढ़ जाता है किन्तु जहां किनारा आता है, वह रुक जाता है। प्रसिद्ध कथा है-अन्धा आदमी चौरासी के चक्कर में फंस गया। वह दीवार का सहारा लिए घूमता रहा। बाहर निकलने का एक ही दरवाजा था। जब बाहर निकलने का दरवाजा आया तब वह सिर को खुजलाने लगा। सिर खुजलाते-खुजलाते वह आगे चला गया, दरवाजा पीछे छूट गया। वह एक अन्तहीन चक्कर में फंस गया। कभी-कभी ऐसा हो जाता है।
महावीर का संदेश जारी था-'गौतम! तुम तीर पर रुक गये हो, तुमने यह अच्छा नहीं किया। तुम निराशा को छोड़ो। अब भी जल्दी करो, तैयार हो जाओ। तीर तुम्हारे सामने है। यह तट सामने दिख रहा है।'
महावीर ने गौतम को बहुत आश्वासन दिया। आचार्य को कभी-कभी बहुत आश्वासन देना होता है। महावीर बोलते चले जा रहे थे-'गौतम! तुम भूल गये हो। तुम्हारा और मेरा सम्बन्ध नया नहीं है। न जाने हमारे संबंध कितने काल से है? न जाने कितने जन्मों से हम दोनों साथ-साथ रह रहे हैं? हमारा चिर-परिचय है, चिर-संसर्ग है। मैं तुम्हारा बहुत पुराना साथी हूं, तुम्हारी उपेक्षा कैसे कर सकता हूं? इस जन्म को पूरा कर हम जहां जायेंगे, वहां तुम और मैं
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