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________________ १३३ तीर पर पहुंच कर क्यों रुके हो? परोक्षे संप्रजायन्ते, बाधास्तत्र विपर्ययः। निराशा विचिकित्सा च, शंका क्वचिच्च संशयः।। परोक्ष की प्रकति स्पष्ट नहीं होती। उसमें बाहर और भीतर का भेद होता है। एक व्यक्ति एक बात कह रहा है किन्तु सामने वाला उसे मानता ही नहीं है। वह सोचता है-बाहर में ऐसा कह रहा है, पता नहीं, इसके भीतर क्या है? व्यवहार में यह कल्पना कौन नहीं करता? व्यक्ति सोचता है-इस व्यक्ति ने मुझे आश्वासन दिया है, यह बाहर से बड़ी मीठी-मीठी बातें कर रहा है पर इसके भीतर क्या है? उसके मन में यह संशय बना रहता है। संशय का कारण परोक्ष की प्रकृति है। उसका परिणाम है बाहर और अंदर का भेद। उसके साथ अनुमान और जुड़ जाता है। व्यक्ति मन ही मन अनुमान और अटकलें लगाता है। उसका सिर भारी बन जाता है। यदि यह परोक्ष ज्ञान नहीं होता, अनुमान नहीं होता तो संगठन की समस्या भी नहीं होती। संगठन की सबसे बड़ी समस्या है-परोक्ष ज्ञान का होना और अनुमान की शक्ति का होना। हर आदमी अपना-अपना अनुमान लगाता है। चाहे अनुमान का हेतु गलत भी हो किंतु वह प्रत्येक बात में अटकलें लगाता है। कहा गया-अनुमान हनुमान की पूंछ की तरह लंबा होता है। उसका कहीं अंत नहीं होता। अस्पष्टता की स्थिति में अनुमान जन्म लेते हैं। जहां अस्पष्टता होती है, बाहर और अंदर का भेद होता है वहां असमाधि का होना असम्भव नहीं है। अस्पष्टता का परिणाम है-असमाधि। समाधि वहीं होती है, जहां प्रत्यक्षीकरण होता है. स्पष्टता होती है परोक्ष विद्यतेऽस्पष्ट, बाह्यान्तरविभेदकद्। सानुमानं च प्रत्यक्षं, स्पष्टं तेन समाधिकृद् ।। असमाधि का कारण : विपर्यय असमाधि का एक कारण है-विपर्यय। किसी व्यक्ति को कहा कुछ जाता है और वह उसे समझ कुछ और लेता है। ऐसी अनेक घटनाएं घटित होती रहती हैं। अगर उनका पूरा विश्लेषण करें तो एक बृहद् ग्रन्थ बन जाए। आचार्यश्री ने कुछ कहा, सामने वाले ने कुछ और ही समझ लिया, उसका ज्ञान विपरीत हो गया। उसके मन में असमाधि का एक भूत खड़ा हो जाता है। जब विपर्यय होता है, मन में निराशा आ जाती है। गौतम के मन में भी निराशा छा गई। गौतम बोले-'भगवान्! आपको अपनी बात क्या बताऊं?' महावीर बोले- 'बताने की कोई जरूरत नहीं है, मैं जानता हूं फिर भी तुम बता दो। तुम्हारा बोझ तो हलका हो जाए।' जब मन में बहुत सारी बातें होती हैं और कोई सुनता नहीं है तो व्यक्ति बेचैन और उदास हो जाता है। पेट का ही अफारा नहीं होता, मस्तिष्क का भी अफारा होता है। पेट का अफारा दवा से जल्दी समाप्त हो ज दिमाग का अफारा किसी दवा से नहीं मिटता। इसे मिटाने का उपाय है रेचन । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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