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________________ २० तीर पर पहुंच कर क्यों रुके हो? एक साधु उदास मुद्रा में बैठा था। मैंने पूछा- 'ऐसे क्यों बैठे हो?' उसने कहा-'मन मे समाधि नहीं है।' 'समाधि क्यों नहीं है?' 'मुझ पर आचार्यश्री की कृपा नहीं है इसलिए मन में समाधि नहीं है।' ‘कृपा नहीं है, इसका कैसे पता चला? क्या ऐसा कोई कारण बता सकते हो, जिससे पता चले-तुम्हारे पर कृपा नहीं है।' "हां! बता सकता हूं। मैं कई बार आचार्यवर के पास गया, दर्शन किए और एक बार भी आचार्यश्री ने यह नहीं पूछा- तुम कैसे हो? कब आए? कितने वर्ष से आए? इससे अपने आप पता चल जाता है कि आचार्यश्री की मुझ पर कृपा नहीं है। इसी कारण मेरे मन में समाधि नहीं है। इस प्रकार की अनेक घटनाएं घटित होती हैं। मैंने मन ही मन सोचा-यह छोटा साधु कम पढ़ा-लिखा है, इसलिए असमाधि में चला गया। कभी-कभी गौतम जैसे मनीषी व्यक्ति भी असमाधि में चले जाते हैं तब इसकी तो बात ही क्या है? गौतम स्वामी महावीर के ज्येष्ठ गणधर थे। महावीर के चौदह हजार साधु थे और छत्तीस हजार साध्वियां थी। उनमें गौतम सबसे पहले महावीर के शिष्य बने। जब वे भी असमाधि में चले जाते हैं तब मैं एक छोटे साधु की बात को लेकर क्यों उलझू? एक बार ऐसा ही हुआ। गौतम स्वामी उदास होकर बैठ गए। वे बड़े खिन्न थे। कभी-कभी शिष्य उदास होता है तो गुरु को मनाना पड़ता है। महावीर को जव यह पता चला-गौतम आज उदास बैठे हैं तो महावीर ने पूछा होगा-'आज ऐसे क्यों बैठे हो।' उत्तर मिला होगा-'मन में समाधि नहीं है।' ___ 'समाधि क्यों नहीं है? तुम मेरे शिष्य बने, मैंने तुम्हें सब साधुओं में अग्रणी बनाया, प्रथम गणधर बनाया फिर भी तुम्हारे चित्त में समाधि नहीं है। यह क्यों?' 'आपकी मुझ पर कृपा नहीं है।' ऐसा सुनकर महावीर भी शायद अचम्भे में पड़े होंगे। ये सारी विचित्रताएं होती हैं। इसका कारण है हमारा परोक्ष ज्ञान। परोक्ष की प्रकृति असमाधि का मूल बीज है परोक्ष ज्ञान। प्रत्यक्ष ज्ञान का न होना असमाधि का बहुत बड़ा कारण है। परोक्ष ज्ञान समाधि में बाधा पैदा करता है। विपर्यय, निराशा, विचिकित्सा, शंका और संशय-ये सब परोक्ष ज्ञान के घटक तत्त्व हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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